स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में आईपीआर पर अतिथि व्याख्यान
भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी विभाग, आइक्यूएसी, रिसर्च कमेटी द्वारा आईपीआर पर अतिथि व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. अमित दुबे साइंटिस्ट ‘डी’ सीजीकॉस्ट थे। उन्होंने राइट्स इन्टेक्चुअल प्रोपर्टी राइट्स पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कोई भी ऐसा काम ऐसा नही जो छोटा हो, आप कोई खोज या रीसर्च करते है उसे आप पेटेंट जरूर करा लें। किसी नवाचार का महत्व तब माना जायेगा, जब वह बाजार में उपयोगी होगा। उन्होंने बताया कि किसी भी इनोवेशन के लिए पहले समस्या मालूम होनी चाहिए, फिर उसका समाधान करने के लिए नया प्रोडक्ट बनायें और तत्पश्चात उसे पेटेंट कराना है। डॉ. दुबे ने बताया कि छत्तीसगढ़ के डॉ. श्यामराव शिर्के ने बहते नाले की गैस से चाय बनाने की टेक्नोलॉजी डेवलप करके उसे पेटेंट कराया, वह दसवीं पास भी नहीं है।
किसी भी इनोवेशन को मार्केट में लाने के लिए बहुत सी टेस्टिंग होती है और बहुत खर्च होता है किंतु सीजीकॉस्ट इसे मुफ्त में करता है। अपने ज्ञान को वेस्ट जाया मत करे उसे पेटेंट कराकर आप लीगल हकदार बनें। उन्होने इंटीलेक्चुअल प्रोपर्टी के अंर्तगत नेशनल पालिसी आॅन आईपीआर की चर्चा की। उन्होंने बताया कि भारत में 2005 सें नियम बनाये गये है, जिसके तहत बुक कापी कराकर देना गलत है जो आइपीएर कानून के अंर्तगत न देकर ई-नोट्स दें। बॉयो डाइवरसिटी पर आधारित किसी भी व्यक्ति द्वारा बनाई दवाई को पेटेंट आप उसे अधिकार दिये बिना नही करा सकते है, यह कानूनी अपराध है।
एम.आई.टी., यू.एस.ए. भी अपने रिसर्च को पेटेंट कराकर उसके रायल्टी से आगे का रिसर्च कार्य करता है। उन्होने बताया कि एड्स की दवाई विष्व में पेटेंट है किंतु अफी्रका में नही बेची जा सकती है। आई.पी.आर.के तीन बेसिक नियम है जो पेटेंट कराने के लिए लागू होते है। आप अपने कार्य को कहीं रिसर्च पेपर के रूप में नही छपायें अन्यथा उस कार्य पर पेटेंट नही मिलेगा, उन्होने बताय कि इसी आधार पर हल्दी, नीम, बासमती आदि का केस हम जीते है। नैचुरल-लॉ पर पेटेंट नही मिलता। मेडिसीन सर्जरी आदि की प्रक्रिया पर पेटेंट नही लिया जा सकता है उसी तरह किसी नये पेड़ या पौधें की किस्म को पेटेंट नही मिलता इसका नाम आप अपने नाम पर रख सकते है। छत्तीसगढ़ के अभिशेक साहू ने एअरब्रेक, साइकल में लगाकर बर्फ में, साइकल रोकने की तकनीक विकसित कर अपनी खोज को पेटेंट कराया।
एनआईटी रायपुर से 17 पेटेंट सीजीकॉस्ट द्वारा फाईल किये गये। उन्होने पेटेंट दो तरीको से कराया जा सकता है-1. अपने आईडिया का प्रोविजनल एप्लीकेशन पेटेंट के लिए फाइल करें और एक वर्श तक अपना रिसर्च वर्क करें तत्पष्चात् आपका पेटेंट यदि कोई और उस कार्य को बाद में करता है तो आपको पेटेंट मिलेगा दूसरे को नही क्योकि आपने आईडिया पहले फाईल किया 2. यदि आपका रिसर्च पूरा हो गया है तो सीधे पेटेंट करायें।
डॉ. दुबे द्वारा दिये गये व्याख्यान से छात्रों को लाभ मिला और छात्रों ने प्रश्न भी कियें जैसे- एम.एस.सी के छात्र आयुश लाल ने पूछा कि नेचर से प्राप्त चीजों का पेटेंट करा सकते है क्या या किसी डिस्कवरी को पेटेंट करा सकते है जिसका उत्तर उन्होने नही कहा। उन्होने बताया कि कुछ चीजों की कॉपीराईट कि जाती है जिसकी रॉयल्टी आजीवन प्राप्त होती है आप अपने इनोवेशन को पेटेंट कराकर रॉयल्टी ले सकते है।
प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने कार्यक्रम की सहराहना की और आईपीआर जैसे विशय को सरल शब्दो में समझाने के लिये डॉ. दुबे का धन्यवाद किया। मुख्य कार्यकारी डॉ. दीपक शर्मा ने कार्यक्रम की प्रशंसा की और इसे छात्रों और प्राध्यापकों के लिये उपयोगी बताया। कार्यक्रम का संचालन स.प्रा. राखी अरोरा ने किया, स.प्रा. डॉ. रजनी मुदलियार, हेमपुश्पा उवर्शा, डॉ. निहारिका देवांगन, डॉ. रचना पाण्डेय, डॉ. स्वाती पाण्डेय, डॉ. चैताली मैथ्यू, डॉ. पूनम शुक्ला, सुनीता शर्मा. श्वेता दवे की उपस्थिति सराहनीय रहीं। विभागाध्यक्ष डॉ. शमा ए. बेग ने धन्यवाद ज्ञापन किया और कहा आज के व्याख्याान के बाद यदि 10 छात्र भी अपना आईडिया पेटेंट के लिए फाईल करें तो हमें इस दिशा में नया प्रोत्साहन मिलेगा।