15 वर्षों से एसएसटीसी में चल रहा है उच्च स्तरीय शोध, टेक्विप-3 ने भी की फंडिंग
भिलाई। श्री शंकराचार्य टेक्निकल कैम्पस के डिपार्टमेंट ऑफ़ एप्लाइड फिजिक्स के प्रो. डॉ मोहन लाल वर्मा को नई दिल्ली में इसी माह 25 से 29 नवम्बर को आयोजित अंतर विश्वविद्यालय त्वरक केन्द्र में राष्ट्रीय स्तर का एक वर्कशाप ‘इन-सिलिको क्वांटम मॉडलिंग स्टडीज’ में बतौर रिसोर्स पर्सन शामिल होंगे। उनके साथ उनके सहकर्मी और प्रथम शोध छात्र डॉ बी केशव राव भी रिसोर्स पर्सन के रूप में भाग ले रहे हैं। डॉ वर्मा इस वर्कशॉप में ठोस बैटरी रिसर्च पर व्याख्यान देंगे। वे देश भर के चुने हुए 40 प्रतिभागियों को मॉलीक्यूलर मॉडलिंग सिखाएंगे। उनके यूट्यूब चैनल पर देश विदेश के विद्यार्थी बड़ी संख्या में यह प्रशिक्षण मुफ्त प्राप्त कर रहे हैं।डॉ वर्मा अपनी टीम के साथ विगत पंद्रह वर्षों से सॉलिड बैटरी पर शोध कर रहे हैं। डॉ वर्मा मध्य भारत में शिक्षा और शोध के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम है। उनके सत्तर से ज्यादा शोध पत्र देश विदेश के जर्नल में प्रकाशित हैं। अभी तक 8 शोध छात्र उनके मार्गदर्शन में अपना शोध कार्य संपन्न कर चुके हैं और 3 अन्य कार्यरत हैं। डिपार्टमेंट आॅफ एप्लाइड फिजिक्स में मटेरियल मॉडलिंग पर रिसर्च लैब कॉलेज के सहयोग से स्थापित किया गया है जो मिशिगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी अमेरिका के सहयोग से पदार्थ के विभिन्न गुणों के अध्ययन और उपकरणों पर उसके उपयोग पर शोध अबाध गति से जारी है। लिथियम आयन बाटरी के अलावा सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम ठोस अवस्था में बैटरी के इलेक्ट्रोड मटेरियल और इलेक्ट्रोलाइट की मटेरियल मॉडलिंग उनके शोध का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इस शोध में एनआईटी रायपुर के प्राध्यापक और शोध छात्र यहां आकर काम करते हैं।
सम्प्रति स्वामी विवेकानंद टेक्निकल यूनिवर्सिटी से टेक्विप-3 के तहत डॉ वर्मा और उनके सहकर्मियों एवं शोध छात्र डॉ होमेन्द्र साहू को बैटरी इलेक्ट्रोलाइट पर चुम्पकीय क्षेत्र के प्रभाव के अध्ययन के लिए शोध परियोजना से वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। आसपास के एमएससी एमटेक के विद्यार्थियों के लिए यह लैब सदैव सहयोग करने के लिए तत्पर रहता है।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष का रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से तीन वैज्ञानिकों जॉन बी गुड इनफ, एम स्टैनले व्हिटिंघम और अकीरा योशिनो को लिथियम आयन बैटरी की खोज, विकास और तकनीकी विकास में उसके अनुप्रयोग के लिए प्रदान किया गया। पिछली सदी के छठे दशक के शुरुआती वर्षों में स्टेनली व्हिटिंघम ने लिथियम के बाहरी इलेक्ट्रॉन को निकालकर पहली काम करने में सक्षम लिथियम बैटरी तैयार की। 1980 में जॉन गुडएनफ ने बैटरी की क्षमता को दोगुना किया। 1985 में अकीरा योशिनो बैटरी से शुद्ध लिथियम निकालने में सफल रहे। इन तीनों के सहयोग से ही लिथियम आयन बैटरियां अस्तित्व में आ सकीं। बिना किसी दिक्कत के सैकड़ों बार रिचार्ज किए जाने में सक्षम इन बैटरियों ने मोबाइल फोन और लैपटॉप जैसे तार रहित इलेक्ट्रानिक उपकरणों के विकास की बुनियाद रखी।
ऊर्जा के नए नए श्रोतों की खोज और उसके संरक्षण पर शोध की आवश्यकता भारत जैसे विकासशील देश के लिए हमेशा बनी रहती है। इसके महत्तम प्रयोग के बावजूद लिथियम आयन बैटरी अपने आप में सम्पूर्ण नहीं है। उसकी खामियों को दूर करने के लिए विश्व भर के वैज्ञानिक प्रयासरत हैं। बैटरी के तीन महत्वपूर्ण भाग होते हैं एनोड, कैथोड और इलेक्ट्रोलाइट। पहले की बड़ी-बड़ी बैटरी में इलेक्ट्रोलाइट द्रव के रूप में होते थे। आजकर इसके सभी भाग ठोस अवस्था में होते हैं। हमारे मोबाइल, लैपटॉप में लागने वाली बैटरी इसका उदाहरण हैं। विश्व भर में इन तीनों भागों के संवर्धन में निरंतर शोध जारी हैं जिससे एक अच्छी बैटरी दुनिया को मिल सके और विद्युत गाड़ी का सहज सरल उपयोग किया जा सके।