डॉ संतोष राय इंस्टीट्यूट द्वारा एक दिवसीय प्रेरणा एवं व्यक्तित्व विकास कार्यशाला का आयोजन
भिलाई। तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों का आम तौर पर यही कहना रहता है कि उन्हें सेहत बनाए रखने के लिए वक्त ही नहीं मिलता। पर जब जान पर बन आती है तो यही लोग अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच वक्त निकाल लेते हैं। यह कहना है कि प्रसिद्ध चर्म रोग विशेषज्ञ, मैराथन धावक एवं ची-रनर डॉ आलोक दीक्षित का। डॉ दीक्षित यहां डॉ संतोष राय इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित एक दिवसीय प्रेरणा एवं व्यक्तित्व विकास कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।डॉ दीक्षित ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए एक किस्सा सुनाया। यूरोप के एक छोटे से गांव में एक रईस उद्योगपति रहता था। वह चर्च की आर्थिक मदद तो करता पर कभी रविवारीय प्रार्थना सभा के लिए वक्त नहीं निकाल पाता। एक बार वह बीमार पड़ता है। डॉक्टर आशंका जताता है कि उसे एक विरल प्रकार का कैंसर है। टेस्ट के लिए रक्त का नमूना लिया जाता है। रिपोर्ट एक महीने बाद आनी होती है। उद्योगपति का जीवन बदल जाता है। अब वह प्रतिदिन चर्च जाता है और रिपोर्ट निगेटिव आने की दुआ मांगता है। उसका कोई काम नहीं रुकता बल्कि काम बढ़ ही जाता है। पर चर्च के लिए वक्त वह फिर भी निकाल लेता है। उन्होंने बताया कि प्रसिद्ध उद्योगपति अनिल अंबानी भी सप्ताह में कम से कम पांच दिन 14-14 किलोमीटर की दौड़ लगाते हैं।
डॉ दीक्षित ने कहा कि हमारा शरीर करोड़ों सेल्स का समग्र है। इन सभी सेल्स को जीवंत बनाए रखने के लिए प्रतिदिन कसरत करना जरूरी है। इसके लिए दौड़ना सबसे अच्छा व्यायाम है। यह कसरत किसी साधनका मोहताज नहीं। अब तो ‘बेअर फुट रनिंग’ – नंगे पांव दौड़ने को बेहतर माना जा रहा है। उन्होंने बताया कि हालांकि मेडिकल कालेज के दिनों में भी वे क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी रहे हैं पर प्रैक्टिस शुरू करने के बाद वे काफी समय तक खेल के मैदान से पूरी तरह कट गए। इस बीच उनके पिता का देहांत हो गया। वे पूरी तरह टूट गए। दिल-दिमाग पर पिता का वियोग हावी हो गया। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए उन्होंने फिर से मैदान का रुख किया और दौड़ना प्रारंभ किया। वे 84 किलोमीटर का डबल मैराथन भी दौड़ चुके हैं।
ची-रनर प्रशिक्षक के रूप में ख्यातिप्राप्त डॉ दीक्षित ने कहा कि लंबे अंतराल के बाद या अधिक उम्र में दौड़ना प्रारंभ करने से छोटी-मोटी आंतरिक चोटें लग सकती हैं। ची-रनिंग इन चोटों से बचा सकता है। दौड़ते समय प्राकृतिक बलों से तालमेल बनाना ही ची-रनिंग है। हमें सामने की ओर इतना झुकना होता है कि शरीर गिरने लगे। गिरने से बचने और संतुलन बनाए रखने के लिए पैर स्वयमेव अपना स्थान बदलेंगे और हम आगे बढ़ने लगेंगे। इससे पैर उस स्थान पर बने रहेंगे जहां शरीर का पूरा भार होगा। इससे पैर तनाव और खिंचाव से बचे रहेंगे और चोट नहीं लगेगी। इस तरह दौड़ने का अभ्यास करने पर लंबी दूरियां तय की जा सकती हैं।
आधुनिक जीवन शैली पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हम स्वस्थ रहना भूल चुके हैं। पहले लोग बीमार पड़ने पर डाक्टर के पास जाते थे पर अब यह एक शौक बन चुका है। किसी को अपनी रंहत से शिकायत है तो कोई अपने बालों को लेकर परेशान है।
जीवन में सफल होने के तीन सूत्र देते हुए डॉ आलोक दीक्षित बताते हैं कि हमें क्षमा करना सीखना होगा। आज क्रिसमस का दिन है। हमें प्रभु यीशू के जीवन से सीख लेनी चाहिए। उन्होंने ईश्वर से उन लोगों को भी माफ करने के लिए प्रार्थना की जिन्होंने उन्हें सर्वाधिक दर्दनाक मौत दी थी। दूसरी बात यह कि आज चारों तरफ ‘मोटिवेशन’ बंट रहा है पर लोगों का जीवन नहीं बदल रहा। क्योंकि लोग इसे एक कान से सुन और दूसरे कान से निकाल रहे हैं। प्रेरक उद्बोधनों का लाभ तभी हो सकता है जब आप इसे अपने घर तक लेकर जाएं और उसपर अमल करना शुरू करें। तीसरी बात जो आपको ऊर्जा से परिपूर्ण रखेगी वह यह है कि जो कुछ भी आप जानते हैं उसे अपने से बेहतर किसी और को सिखाने का प्रयास करें। इस कार्य में यदि सफल हो गए तो आपका जीवन सफल हो जाएगा।
कार्यक्रम को महिला उद्यमी डॉ सिपी दुबे, उद्योगपति अमित श्रीवास्तव ने भी संबोधित किया। संचालन कॉमर्स गुरू डॉ संतोष राय ने किया। इस अवसर पर विदिशा खरे एवं विकास खरे विशेष रूप से उपस्थित थे।