नेहरू आर्ट गैलरी भिलाई में एकल प्रदर्शनी का शुभारंभ, युवा कलाकारों के साथ ही पहुंचे कला मर्मज्ञ भी
भिलाई। आधुनिक जीवन शैली के नीचे कहीं दब गई है हमारी मौलिकता। खो गए हैं वो पल, जिनके लिए मन तड़पता है। सखियों का साथ बैठना, हंसना-खिलखिलाना, अभिसारिका के हाथों के कोमल स्पर्श को महसूस करना, संतान से जीवन्त सम्पर्क, नन्दिनी के चित्रों में वह सबकुछ है जो सुखद जीवन के अपरिहार्य अंग हैं। नन्दिनी की तूलिका इन प्रसंगों को चटख रंगों से जीवंत कर देती है। जीवन प्रवाह ‘फ्लो ऑफ़ लाइफ’ का उनका समृद्ध संग्रह बरबस ही आपको एक अलग दुनिया में ले जाता है। उनके अमूर्त एवं साकार चित्रों में जनजीवन को भी अभिव्यक्ति मिलती है। उनकी कृतियों की प्रदर्शनी नेहरू आर्ट गैलरी में गुरुवार को प्रारंभ हुई। महज डेढ़ दशक में उन्होंने देश विदेश की दर्जनों प्रदर्शनियों में न केवल अपनी भागीदारी दी है बल्कि प्रशंसित भी हुई हैं। अनेक खिताब अपने नाम कर चुकीं नन्दिनी व्यक्तिगत तौर पर भी उतनी ही सहज और सरल हैं। अपनी कृतियों का सारा श्रेय अपने परिवेश और परिजनों को देते हुए वे कहती हैं कि जब ‘क्रिटिक’ घर में ही हो तो कला को निखरना ही होता है। उनका बचपन महासमुंद और कांकेर के जंगलों से जुड़ा रहा। चित्रकारी का शौक तो था ही। रायपुर के दानी स्कूल में फाइन आर्ट्स का विषय भी था। परन्तु जब वे वहां पहुंचीं तो यह विषय बंद हो गया। कला साधना घर पर ही चलती रही।
छत्रपति शिवाजी इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चेयरमैन अजय प्रकाश वर्मा से विवाह हुआ। वे स्वयं भी इस संस्था की डायरेक्टर हैं। अजय ने भी उनकी रचनात्मकता में रुचि ली। पति का कला मर्मज्ञ होना उनके लिए एक सुखद अनुभूति थी। वे न केवल उन्हें निरंतर काम करने के लिए प्रेरित करते रहे बल्कि अपनी रचनात्मक आलोचनाओं से उनकी कला को नए आयाम भी देते रहे। वे कहती हैं, ‘परिवार के समर्थन और प्रोत्साहन के बिना कुछ भी संभव नहीं है।’
जीवन के यथार्थ को रेखांकित करती अमूर्त कला ‘एब्स्ट्रैक्ट आर्ट’ से उनका गहरा जुड़ाव रहा है। एक तरफ जहां समुद्र की अतल गहराइयों में सीप में सिमटी नारी अपने सृजन को सहेजती नजर आती है वहीं दूसरी तरफ निर्झर सी बहती रंगों की धारा मन को आलोड़ित करती हैं। उनकी साकार ‘फिगरेटिव’ कृतियों में मौलिक जीवन की झलक मुखर है। इनमें वनवासी जीवन को बेहद खूबसूरती से उकेरा गया है।
उनके साकार चित्रों में आकृति की स्पष्टता, दृढ़ रेखांकन, अटूट आभूषण, सुरुचिपूर्ण परिधान ध्यान आकर्षित करते हैं। बड़ी-बड़ी आंखें बातें करती प्रतीत होती हैं। कहीं परिवारबोध को उकेरा गया है तो कहीं सखियों के बंधन को। कहीं पतंग के सहारे कल्पना उड़ान भरती प्रतीत होती है तो कहीं हाथों के स्पर्श से प्रेम को अभिव्यक्ति मिलती है। एकल नारी चित्रों में उसके परिधान और आभूषण जीवंत हो उठते हैं।
प्रदर्शनी को पहले दिन देखने वालों में शहर के युवा कलाकारों के साथ ही कला मर्मज्ञ भी शामिल थे। यह प्रदर्शनी शनिवार तक चलेगी। इस प्रदर्शनी में न केवल कला मर्मज्ञों के लिए बहुत कुछ है बल्कि उभरते हुए कलाकारों के लिए भी यह प्रेरणास्पद साबित होगी।