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स्वरूपानंद महाविद्यालय में गांधी दर्शन पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का समापन

Feb 8, 2020

Seminar on Gandhi at SSSSMVभिलाई। स्वामी श्री स्वरूपांनद सरस्वती महाविद्यालय एवं जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान दुर्ग के संयुक्त तात्वावधान में ‘आधुनिक शिक्षा प्रणाली एवं गांधी दर्शन’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन समारोह इना चतुर्वेदी मैकनिकल इंजीनियर यूक्रेन के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री गंगाजली शिक्षण समिति के अध्यक्ष आई.पी. मिश्रा एवं विशेष अतिथि महाविद्यालय के सीओओ डॉ. दीपक शर्मा, शंकराचार्य नर्सिंग महाविद्यालय के सी.ओ.ओ. डॉ. मोनिषा शर्मा व प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला थी।Gandhi Seminar at SSSSMV Bhilaiकार्यक्रम की संयोजक डॉ. स्वाति पाण्डेय स.प्रा. शिक्षा विभाग ने शोध संगोष्ठी में उभरे प्रमुख बिन्दुओं को सारांश रुप में प्रस्तुत किया। अपने आतिथ्य उद्बोधन में ईना चतुर्वेदी ने कहा महात्मा गांधी की विष्व में पहचान सत्य और अहिंसा के पूजारी के रुप में रही है। चर्चिल से ओबामा तक ने भी उनके सिद्धांतों व जीवन दर्शन की सराहना की है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आई.पी. मिश्रा ने कहा महात्मा गांधी वह व्यक्ति है जिसने अपने जीवन को मानव समाज और देश के लिए समर्पित कर अहिंसा की ताकत का मूल्य समझाया। गांधी दर्शन के मूल में सत्य अहिंसा सादगी अपरिग्रह का समावेष है। गांधीजी बाहरी वस्तुओं अर्थात विदेशी वस्तुओं के त्याग पर बल देते थे क्योंकि इससे हमारी स्वतंत्रता कम होती है व हम दूसरों पर निर्भर होते जाते है इससे परतंत्रता की शुरुआत होती है।
विशेष अतिथि डॉ. दीपक शर्मा ने कहा कि विद्यार्थी गांधीजी के विचारों को आत्मसात कर देश के कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बन सकते है। यदि विद्यार्थी गांधीजी के बताये नियमों पर चले तो भारत ना केवल तकनीकी विकास कर सकता है बल्कि आध्यात्मिक विकास कर विश्व में अपनी पहचान बना सकता है।
प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने कहा हमारी शिक्षा प्रणाली हमें दूसरों पर आश्रित बना रही है। आज हम उनकी बुनियादी शिक्षा को अपनाकर स्वावलंबी बन सकते है। आप गांधी के सिद्धांतों को आत्मसात करते हैं तभी सेमीनार सार्थक होगा।
सत्र वक्ता डॉ. मोनिषा शर्मा ने कहा गांधीजी आज भी प्रासंगिक है गांधी जी के मूल सिद्धांत है बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो पर यह आज के विद्यार्थी आत्मसात नहीं कर पाते है आज का मूल सिद्धांत अच्छा देखो, अच्छा सुनो, अच्छा बोलो हो गया है।
सेमीनार के तृतीय सत्र के मुख्यवक्ता डॉ. अमरेश त्रिपाठी शासकीय महाविद्यालय कचांदुर ने कहा शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों की क्षमता का विकास करना है। विद्यार्थी जिसमें रुचि होती है उसमें अधिक उत्साह से कार्य करते है माता पिता बच्चों को आर्थिक रुप से स्वावलंबी बनाना चाहते है जबकि समाज बच्चों को श्रेष्ठ नागरिक बनाना चाहता है।
सत्र अध्यक्ष डॉ. ज्योति धारकर विभागाध्यक्ष इतिहास साइंस महाविद्यालय दुर्ग ने कहा गांधी जी हर सम्मेलन व अधिवेशन में व्यक्ति के उत्थान की बात करते थे। यदि ईश्वर को पाना है तो अपने बाहय व अर्न्तमन को शुद्ध एवं स्वच्छ रखें। गांधीजी के मन में बचपन से ही मैला ढोने वालों के प्रति अनुराग था वे कहते थे शिक्षा से भी ज्यादा महत्व स्वच्छता का है।
चतुर्थ सत्र के मुख्यवक्ता डॉ. आर.पी. अग्रवाल राष्ट्रीय सेवा योजना जिला संयोजक ने कहा आज 150 वर्ष बाद भी गांधी जी के विचार प्रासंगिक है उनकी गोद ग्राम योजना, स्वच्छता, पर्यावरण, सभी योजना एन.एस.एस. में शामिल है। गांधीजी ने उद्यमिता की बात कही यदि देश में इस योजना का प्रारंभ आजादी के बाद से कर दिया जाता तो आज बेरोजगारी की स्थिति नहीं आती। गांधी हमेशा साधन एवं साध्य की पवित्रता पर बल देते थे।
सत्र की अध्यक्षता करते हुये डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव डायरेक्टर चतुर्भुज फाउण्डेशन ने कहा समाज के निर्माण के लिये शिक्षा अति आवश्यक है जिससे शोषण विहीन समाज का निर्माण होता है। विद्यार्थियों को मूल्य शिक्षा, मौलिक, सामाजिक व नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिये। जिससे उनमें आत्मिक गुणों का विकास हो शिक्षा ऐसी हो जो श्रम के प्रति सकारात्मक सोच रखे। श्री श्रीवास्तव ने बताया गांधीजी की शिक्षा का अर्थ अक्षर ज्ञान से न होकर स्वावलंब पर केन्द्रित थी।
स.प्रा. रजनी सिंग, सोजू सैमुअल सहित 18 चयनति शोधार्थियों ने शोधपत्र पढेÞ। कार्यक्रम में 125 से अधिक प्राध्यापकों व शोधार्थियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में मंच संचालन डॉ. पूनम शुक्ला स.प्रा. शिक्षा विभाग व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नीलम गांधी विभागाध्यक्ष वाणिज्य ने दिया।

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