भिलाई। नगर पालिक क्षेत्र की स्वच्छता को अपनी आजीविका बनाने वाले लोगों को नेताओं का झाड़ू उठाना अच्छा नहीं लगता। दो फुट जमीन पर चार से छह नेता झाड़ू लेकर खड़े होते हैं तो उन्हें हंसी आ जाती है। वे कहती हैं कि इतनी सुविधा जुटाने के बाद भी लोग जहां तहां कचरा फेंक रहे हैं, अलग-अलग पेटियां देने के बाद भी लोग गीला और सूखा कचरा अलग अलग नहीं डाल रहे हैं। उन्हें लगता कि सख्ती किए बिना काम नहीं बनेगा। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में महिला स्वच्छता कर्मियों से बातचीत की। इनमें से अधिकांश महिलाएं 12-15 वर्षों से स्वच्छा का कार्य कर रही हैं। यदि पूरी ड्यूटी की तो उन्हें प्रति माह 7000-7500 रुपए वेतन मिलता है। अलसुबह घर का सारा काम निपटाकर नाश्ता बनाकर, अपना खाना लेकर वे काम पर आती हैं। लौटते लौटते शाम के 3-4 बज जाते हैं। इनमें से एक महिला तो ग्राम ढौर से आती है। कोई बैकुंठधाम से आती है तो कोई कांट्रेक्टर कालोनी से। कुछ महिलाओं ने बताया कि काफी लंबे समय से काम कर रही हैं और अब यह उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है। घर के आसपास काम को लेकर इन महिलाओं की धारणा अलग अलग थी। किसी ने कहा कि अपने मोहल्ले की सफाई करने में अच्छा नहीं लगेगा। यह उनके लिए, परिवरा के लिए और उनके बच्चों के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है। इसलिए वे दूर दराज में काम करके सुखी हैं। पैसे भी अच्छे मिल जाते हैं और घर का काम भी हो जाता है। हालांकि दिन भर काम करने के कारण थकान बहुत हो जाती है पर पेट और परिवार के लिए ऐसा करना उन्हें अच्छा लगता है। इनमें से किसी का पति मजदूर है तो किसी का पति रिक्शा चलाता है। मिला जुलाकर घर अच्छे से चल जाता है। वे अपने बच्चों को अच्छी तालीम देने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उन्हें जीवन में इन विषम परिस्थितयों का सामना न करना पड़े। जब उन्हें बताया गया कि पूरी दुनिया 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाती है तो वे हंस पड़ीं। कहा- इसकी क्या जरूरत है। एक औरत विवाह के बाद जब ससुराल जाती है तो उसकी 365 दिन बिना वेतन की नौकरी शुरू हो जाती है। वे खुशकिस्मत हैं कि उन्हें कुछ देर काम करने के ऐवज में पैसे भी मिल जाते हैं जिसका उपयोग वे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए करती हैं।