संबलपुर विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय भाषा सम्मेलन
संबलपुर। आंचलिक देशज शब्दों के व्यवहार से ओड़िया भाषा और भी समृद्ध हो पाएगी। आंचलिक देशज शब्दों का व्यवहार ही आत्मियता को बढ़ाता है। भाषा के विकास में आंचलिकता तो रहेगी, किन्तु यह विभाजन नहीं होगा। आंचलिक भाषा के गीत को लेकर शास्त्रीय ओड़िया भाषा संपूर्ण नहीं हो सकती। उक्त उद्गार साहित्यकार एवं पूर्व प्रशासक संजीव चन्द्र होता ने संबलपुर विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय भाषा सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित करते हुए कहीं।इस सम्मेलन का आयोजन ओड़िया अध्ययन एवं शोध संस्था तथा संबलपुर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था। विश्वविद्यालय के सुइट कैंपस में आयोजित इस सम्मेलन में संबलपुर विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति प्रोफेसर अर्ककेशरी दास महापात्र एवं गंगाधर मेहेर विश्वविद्यालय के पूर्व डीन डॉ. कामदेव साहू सम्मानित अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। शोध संस्था की उपाध्यक्ष डॉ. सिप्रा मल्लिक ने स्वागत भाषण में कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य केवल विचारों का आदान-प्रदान नहीं है। सम्मेलन का उद्देश्य भाषा को संरक्षित, संवर्द्धित एवं सुरक्षित करना भी है।
सदस्य सचिव डॉ. सुव्रत कुमार पृष्टि ने सम्मेलन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। संस्था के अन्यतम उपाध्यक्ष डॉ. नटवर शतपथी एवं अध्यक्ष श्री बेउरिया ने भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। इस चार दिवसीय सम्मेलन में राज्य तथा राज्य बाहर के करीब डेढ़ सौ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया है। विश्वविद्यालय एवं इससे जुड़े महाविद्यालय के विभिन्न विभाग के सैकड़ों विद्यार्थी इस सम्मेलन में शामिल हुए थे। अंत में नीरब खुंटिया ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता अभय कुमार पाढ़ी ने की। डॉ. काकोली मुखर्जी ने ‘2011 जनगणना में भारतीय भाषा’ शीर्षक निबंध पाठ किया। अन्य वक्ता वक्ता प्रोफेसर बसंत कुमार पंडा ने ‘अनुवाद सिद्धांत एवं व्यवहारिकता’ निबंध पाठ किया। चिन्मय नंद ने संयोजन किया। द्वितीय सत्र में अलग-अलग रूप से अनुवाद साहित्य, मेनुस्क्रपोलॉजी एवं संबलपुरी भाषा के विषय पर चर्चा की गई। इसकी अध्यक्षता डॉ. नटवर शतपथी एवं डॉ. श्याम भोई ने की। विशेष अधिवेशन के बाद महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया गया।