हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के अस्थिरोग विशेषज्ञ से बातचीत के अंश
भिलाई। व्यायाम की कमी, असहज मुद्रा, गलत फर्नीचर आपकी रीढ़ को बीमार कर सकती है। ओवर द काउंटर उपलब्ध दर्द निवारक औषधियों के सेवन से इसे लंबे समय तक छिपाए रखना खतरनाक हो सकता है। बात सर्जरी तक जा सकती है। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के डॉ राहुल ठाकुर कहते हैं, तत्काल चिकित्सक की सलाह लें और कारण का पता लगाकर उसे दूर करने के उपाय करें। इससे आपकी रीढ़ भी सुरक्षित रहेगी और दर्द से भी आराम मिल जाएगा। गलत पॉश्चर और व्यायाम की कमी की वजह से गर्दन, पीठ और कमर दर्द की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। मांसपेशियों, अस्थिरज्जु, कमर व पीठ की हड्डियों में विकृति या फिर रीढ़ की हड्डी में मौजूद डिस्क का क्षतिग्रस्त होना इसका कारण हो सकता है। स्पॉन्डिलायसिस : यह एक पुरानी बीमारी है, जिसमें पीठ में गर्दन से लेकर कमर के पास रीढ़ के अंतिम छोर तक के जोड़ों में दर्द या सूजन हो जाती है। हमारे खड़े होने, चलने और बैठने का गलत तरीका गर्दन और कमर के बीच की हड्डी पर असर डालता है। न्यूरो तंत्रिका में खिंचाव के कारण यह दर्द गर्दन, बांह, कंधे, पीठ और कमर तक फैल जाता है। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के डॉ राहुल ठाकुर कहते हैं, हमारा वजन रीढ़ की हड्डी के जरिये ट्रांसफर होता है। मांसपेशियां मजबूत न होने पर हड्डियों पर अधिक दबाव पड़ता है। पहले जहां पीठ व कमर दर्द से जुड़े ऐसे मामले 45 से 50 की उम्र के लोगों में देखने को मिलते थे, वहीं अब जीवनशैली के प्रति लापरवाह 25-30 साल के युवा भी बड़ी संख्या में डॉक्टरों के पास पहुंच रहे हैं।
डॉ ठाकुर बताते हैं कि हमारी रीढ़ की हड्डी अनेक वर्टेब्रे से मिल कर बनी होती है। ये एक दूसरे के ऊपर रखे होते हैं। इनके बीच में एक कुशन या गद्दे के समान मुलायम डिस्क होती है, जो वर्टेबे्र को आपस में रगड़ने या टकराने से रोकती है। इसी डिस्क के कारण रीढ़ में लचीलापन होता है। सर्वाइकल स्पांडिलायसिस में आमतौर पर पांचवीं और छठी, छठी और सातवीं और चौथी और सातवीं के बीच डिस्क के वर्टेब्र प्रभावित होते हैं। घंटों मोबाइल फोन, कंप्यूटर, लैपटॉप पर समय बिताना और व्यायाम की कमी कमर व पीठ दर्द की समस्याएं पैदा कर रही हैं।
जांच व उपचार : सामान्य जांच और लक्षणों से यदि स्पॉन्डिलायसिस का पता नहीं चलता तो डॉक्टर पहले एक्सरे और उसके बाद एमआरआई कराते हैं। सामान्य स्थिति में दर्द निवारक और सूजन कम करने वाली दवाएं दी जाती हैं। इसमें नॉन स्टेरायडल एंटी इंफ्लामेट्री दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। फिजियोथेरेपी भी कारगर है। यदि गलत मुद्रा के कारण मांसपेशियों में कमजोरी आती है तो इलेक्ट्रोथेरपी की जाती है। सर्वाइकल ट्रैक्शन, आईएफटी एंड अल्ट्रासॉनिक थेरेपी, लेजर थेरेपी से भी दर्द कम किया जाता है। स्थिति अधिक गंभीर होने पर सर्जरी का सहारा लिया जाता है।
पीठ दर्द से बचने के तरीके
– उठने, बैठने व सोने की मुद्रा को ठीक करें। कुर्सी पर बैठते समय मेज की ऊंचाई का ध्यान रखें। गलत मुद्रा में बैठने से पीठ की मांसपेशियों में लचक आ जाती है।
– दर्द नहीं भी है तो भी नियमित रूप से 20 से 30 मिनट तेज गति से चलें। रस्सी कूदना, सीढ़ियां चढ़ना-उतरना, स्विमिंग व साइक्लिंग को व्यायाम में शामिल करें।
– गर्दन को सहारा देने के लिए बोन कॉलर पहनते हैं, बिना परामर्श इसे एक हफ्ते से अधिक न पहनें। यह दर्द कम करने का तरीका है, उपचार नहीं।
– लेट कर टीवी ना देखें। लंबे समय तक गाड़ी न चलाएं। भारी सामान को ढंग से उठाएं। अपने घुटने मोड़ें और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। वजन को शरीर के दोनों भागों में बराबर रखें।