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भाषायी तथा सांस्कृतिक विविधता को बचाए रखने मातृभाषा आवश्यक – डॉ. जय प्रकाश

Mar 4, 2020

VYT Science College Durgदुर्ग। मातृभाषा हम सबको प्यारी होती है। जिन्दगी की शुरूवात हम मां की भाषा से ही करते हैं। जब हम दुख में होते हैं तो और अत्याधिक खुशी के क्षणों में सबसे पहले मां को याद करते हैं। किसी भी विषय को व्यक्त करने के लिए मातृभाषा सबसे अधिक सहायक होती है। उक्त विचार शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित विश्व मातृभाषा दिवस का उद्घाटन करते हुए प्रभारी प्राचार्य डॉ. एम.के. सिद्दीकी ने व्यक्त किये। World Mother Tongue Dayविभाग के अध्यक्ष डॉ. अभिनेष सुराना ने विश्व मातृ भाषा दिवस मनाये जाने का इतिहास बताया। उन्होंने बताया कि 1952 में पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान पर उर्दू भाषा थोपे जाने के विरोध में ढाका विश्वविद्यालय में युवाओं का आन्दोलन हुआ। जहां पुलिस के गोली चालन से 4 विद्यार्थी शहीद हुये। उनकी याद में मातृभाषा दिवस मनाये जाने का सिलसिला शुरू हुआ और बंगला भाषी पूर्वी पाकिस्तान 1971 में एक स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आया। उन्हीं को याद करते हुए यूनेस्को द्वारा 1999 में 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस मनाये जाने का निर्णय लिया गया। 2008 से पूरी दुनिया में औपचारिक तौर पर विश्व मातृ भाषा दिवस मनाया जा रहा है।
आधार वक्तव्य देते हुये डॉ. जय प्रकाश ने मातृभाषा के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा वैश्वीकरण से विकसित पूंजी, तकनीक तथा बाजार की सम्मिलित शक्तियां हमारी बहुलतावादी संस्कृति को खत्म करना चाहती हैं। वर्तमान फासीवादी उभार से न केवल जैव विविधता खतरे में है, बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति खतरे में है। उन्होंने आगे कहा कि भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ पर बंगला देश ने यह सिध्द कर दिया कि धर्म के आधार पर राष्ट्र नहीं बन सकता। भाषा और संस्कृति से ही राष्ट्र का निर्माण संभव है। इसीलिए मानवता की रक्षा, राष्ट्रों के बीच परस्पर संवाद तथा सौहार्द्र के लिए मातृभाषा को बचाना आवश्यक है।
इसी कड़ी में डॉ. के. पद्मावती ने तेलगू डॉ. ज्योति धारकर (मराठी) डॉ. शंकर निषाद (भोजपुरी) डॉ. तरलोचन कौर (पंजाबी), डॉ. मीना मान (उड़िया) डॉ. कृष्णा चटर्जी (बंगला) डॉ. वेदवती मंडावी (छत्तीसगढ़ी) तथा डॉ. जनेन्द्र दीवान (संस्कृत) ने अपनी भाषा के श्रेष्ठ साहित्य के चुने हुये अंशों का पाठ कर भाषायी विविधता और उसके सौन्दर्य को उद्घाटित किया।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि छत्तीसगढ़ी भाषा के साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर तथा त्रेता चन्द्राकर ने छत्तीसगढ़ी भाषा की विशेषता को बताया। वयोवृध्द अभिनेता शिवकुमार दीपक ने ‘छत्तीसगढ़ महतारी’ 20 सूत्रीय नाटक पर पूरी भाव-भंगिमा के साथ एकल अभिनय प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर काव्य पाठ का भी आयोजन किया गया, जिसमें शीतल सेन, दुर्गेश्वरी वर्मा, भूपेश साहू, जितेन्द्र कुमार, प्रतीक्षा तिवारी, जैनब खातून, मनीष जांगड़े, वेद प्रकाश, अमित टण्डन, लेविश कुमार तथा कुलेश्वर जायसवाल ने हिस्सा लिया। हिन्दी से छत्तीसगढ़ी में अनुवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें अनामिका असाटी प्रथम, करूणा रामटेके द्वितीय, जितेन्द्र कुमार को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ।
अंत में शिवकुमार दीपक का विभाग की ओर से शाल एवं श्रीफल भेंटकर सम्मान किया गया। कार्यक्रम में प्राध्यापक डॉ. बलजीत कौर, डॉ. सुचित्रा गुप्ता, डॉ. पूर्णा बोस, डॉ. मीता चक्रवर्ती, डॉ. सुचित्रा शर्मा, डॉ. सुरेखा जैन, डॉ. सोमाली गुप्ता, डॉ. आई.एस. चन्द्राकर, डॉ. रंजना श्रीवास्तव, डॉ. सुनीता मैथ्यू, डॉ. विजय लक्ष्मी नायडू, डॉ. सरिता मिश्रा, प्रियंका यादव एवं अमित मिश्रा के अलावा बड़ी संख्या में महाविद्यालय के विद्यार्थी एवं कमर्चारीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रजनीष उमरे व आभार प्रदर्शन प्रोफेसर थानसिंह वर्मा ने किया।

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