भिलाई। दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के दौरान श्री शंकराचार्य महाविद्यालय में ग्रामीण छत्तीसगढ़ का दृश्य उभर आया। यह परिवर्तन परिसर से लेकर मंच तक तो नजर आया ही, नाश्ते से लेकर भोजन तक भी इसकी सुगंध बिखरी रही। काठमाण्डु एवं ढाका से आए विद्वानों के साथ ही नागपुर एवं खैरागढ़ से आए वक्ताओं ने भी इसे देखा, महसूस किया और इसकी सराहना की। स्वच्छता और पर्यावरण की सुरक्षा, नारी सशक्तिकरण की दिशा में महाविद्यालय के प्रयासों को भी खूब सराहना मिली। डायरेक्टर एवं प्राचार्य डॉ रक्षा सिंह के नेतृत्व में डॉ अर्चना झा, डॉ लक्ष्मी एवं डॉ गायत्री ने इस थीम को अंजाम तक पहुंचाया। प्रवेश द्वार के पास ही एक कुंआ था जिसके पास गाय बंधी हुई थी। बछड़े को दूध पिलाती गाय बरबस ध्यान आकर्षित कर रही थी। इसके पास ही छत्तीसगढ़ी परिधान में छात्राओं ने स्टाल लगा रखा था। घास-फूस की इस झोपड़ी में छत्तीसगढ़ी कलेवा बिक रहा था। आगंतुक यहां चिला, फरा, चटनी, गुलगुला, ठेठरी, खुरमी का स्वाद ले रहे थे।
महाविद्यालय भवन के प्रवेश द्वार पर विभिन्न रंगों में रंगे धान से खूबसूरत रंगोली की गई थी। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है। विद्यार्थी इससे लगे गलियारे की दीवार पर भित्ती चित्र बना रहे थे। उन्हें इसका प्रशिक्षण इंदिरा गांधी कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में फाइन आर्ट्स के प्राध्यापक डॉ विकास चन्द्र दे रहे थे। गहरे भूरे एक्सटीरियर इमल्शन से दीवारों को रंगने के बाद उसपर सफेद रंग से विभिन्न कलात्मक आकृतियां उकेरी जा रही थीं।
छत्तीसगढ़ की यह सुगंध अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के मंच तक फैली थी। मंच पर छत्तीसगढ़ी माटीशिल्प से साज सज्जा की गई थी। मंच पर नीचे नांदिया बैला की कतार सजी थी। जोड़े में इन्हें मेज पर भी सजाया गया था। इसके साथ ही मिट्टी के बर्तनों का उपयोग चाय नाश्ते के लिए किया गया था।
स्वल्पाहार में चिला, फरा, ठेठरी, खुरमी, गुलगुला को शामिल किया गया था जिसका अतिथियों ने खूब आनंद लिया। उन्होंने अपनी प्लेट की फोटो खींची। साथ ही प्रत्येक व्यंजन का नाम और उसमें उपयोग की गई सामग्रियों के विषय में भी जानकारी ली।
अतिथियों ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कागज के कम से कम उपयोग की महाविद्यालय की कोशिशों की सराहना की। इस अवसर पर विमोचित ई-स्मारिका को भी इससे जोड़ कर देखा गया। महाविद्यालय की निदेशक/प्राचार्य डॉ रक्षा सिंह ने बताया कि इलेक्ट्रानिक पुस्तकों, स्मारिकाओं का उपयोग कर हम पेड़ों को कटने से बचा सकते हैं। ई-स्मारिका पेन-ड्राइव में उपलब्ध कराई गई थी। स्वच्छता और पर्यावरण की सुरक्षा, नारी सशक्तिकरण की दिशा में महाविद्यालय के प्रयासों को भी खूब सराहना मिली।
सी-कॉस्ट के डीजी मुदित कुमार सिंह इस सेमिनार के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि थे। समापन समारोह हेमचंद विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुण पल्टा के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुआ। दो दिवसीय सेमिनार में काठमाण्डु विश्वविद्यालय नेपाल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ भूपल गोविन्द श्रेष्ठ, साउथ एशियान यूनिवर्सिटी ढाका में एग्रोनॉमी के प्राध्यापक डॉ मिर्जा हंसनाजुमान, रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में बायोटेक्नालॉजी के प्राध्यापक डॉ एसके जाधव, इंदिरा गांधी कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में फाइन आर्ट्स के प्राध्यापक डॉ विकास चन्द, श्री गंगाजलि एजुकेशन सोसायटी के चेयरमैन आईपी मिश्रा, अध्यक्ष जया मिश्रा, महाविद्यालय की प्राचार्या/निदेशक डॉ. रक्षा सिंह एवं अति. निदेशक डॉ. जे. दुर्गा. प्रसाद राव सहित महाविद्यालय परिवार शामिल हुआ।