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स्वरूपानंद महाविद्यालय में दर्शन पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी संपन्न

Mar 1, 2020

SSSSMVभिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय व भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भारतीय दर्शन का संत साहित्य पर प्रभाव विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का समापन समारोह रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. केसरी लाल वर्मा के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता आई.पी. मिश्रा अध्यक्ष गंगाजली शिक्षण समिति ने की। SSSSMV-International-Semina SSSSMVविशेष अतिथि के रुप में डॉ. दीपक शर्मा सी.ओ.ओ स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महराविद्यालय हुडको भिलाई। डॉ. महेशचंद्र शर्मा बहु-भाषाविद शिक्षाविद लेखक इस्पात नगरी भिलाई छत्तीसगढ़ डॉ. संदीप अवस्थी शोध अवस्थी निदेशक भगवंत विश्वविद्यालय अजमेर (राजस्थान) सरला शर्मा वरिष्ठ साहित्यकार दुर्ग उपस्थित हुई।
डॉ. शमा ए. बेग विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलाजी ने दो दिवसीय सेमिनार में उभरे बिंदुओं को सार रूप में प्रस्तुत किया तथा बताया संत ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम है। प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा भारतीय दर्शन का मूल सिद्धांत सत् चित आनंद है जिसे हम सच्चिदानंद स्वरूप कहते हैं।
हम अच्छा देखना, सुनना चाहते हैं पर अच्छा करना नहीं चाहते अगर दूसरे की थाली में अपने से ज्यादा परसे देखते हैं तो ईर्ष्या होने लगती है रविदास, कबीर, तुलसी, स्वयंभू संत नहीं बने अपितु उनके आचरण के कारण लोगों ने उन्हें संत की उपाधि से विभूषित किया। कृष्ण और कंस राम व रावण एक राशि के होने के बावजूद दोनों के व्यवहार में अंतर है एक का व्यवहार अनुकरणीय है पर दूसरे को हम तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं।
कुलपति डॉ. केसरी लाल वर्मा ने दर्शन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर महाविद्यालय को बधाई देते हुए कहा संतों की विचारों को जीवंत रखते हुए व उनके उद्देश्यों पर विचार कर रहे हैं यह अत्यंत प्रशंसनीय हैं आज हम समाज में एकता और समरसता व सर्वधर्म समभाव का प्रभाव देखते हैं वह भारतीय संतो के संदेशों व प्रयत्नों की देन है।
संतों ने बेहतर समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया विचारों का आदान-प्रदान व संगोष्ठी में उभरे बिंदुओं को लोगों तक पहुंचाना यही संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य है। शिक्षा के द्वारा विद्याथिर्यों में ज्ञान के साथ-साथ नैतिक गुणों का विकास होगा उन्होंने बताया छत्तीसगढ़ के सभी विश्वविद्यालय की नैक मूल्यांकन के लिए रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय को नोडल केंद्र बनाया गया है हम सब मिलकर कार्य करेंगे। जिससे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
आई पी मिश्रा ने अपने अध्यक्षी उद्बोधन में कहा भारतीय दर्शन की मूल अवधारणा ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई’ पर आधारित है हमारा धर्म हमें सहिष्णुता व अन्य धर्म का आदर करना सिखाता है भारतीय दर्शन का संत साहित्य पर प्रभाव देखना है तो हमें भक्तिकालीन साहित्य को देखना होगा।
डॉ. दीपक शर्मा ने कहा भारतीय दर्शन के मूल में आत्मा को परमात्मा का अंश माना गया है और आत्मा पुन: परमात्मा में विलिन हो जाती है तब मोक्ष की प्राप्ती होती है पर मनुष्य माया के बस में जीवन मरण के चक्र में फंसा हुआ है।
प्रथम सत्र में विषय के प्रवर्तक डॉ. महेशचंद्र शर्मा थे जिन्होंने भारतीय संत साहित्य: मानवता दर्शन की प्रासंगिकता विषय पर अपने विचार व्यक्त किए व बताया सरस्वती के दो तट ज्ञानियों व कवियों के हैं। ज्ञान गंगा रूपी सरस्वती नदी के एक तट पर अमृत है जिसे काव्य रस कहते है तो दूसरे तट पर नीम रस का प्रवाह है पर कड़वा होने के बावजूद औषधि के समान लाभप्रद है।
मुख्य वक्ता डॉ. आर. पी. अग्रवाल विभागाध्यक्ष वाणिज्य कल्याण महाविद्यालय भिलाई छ.ग. ने कहा सभी दर्शन के मूल में दुख है और यही दुख सुख की ओर ले जाता है अगर राम राजा बन कर रह जाते तो कोई प्रसिद्धि नहीं मिलती 14 वर्ष वनवास गए वहां तकलीफ से गुजरे उसी दुख ने उन्हें पुरुषोत्तम राम बना दिया। तुलसी ने रामचरितमानस के माध्यम से राजा, सेवक, भाई, पत्नी का आदर्श चरित्र लोगों के सामने रखा राम वन गए तभी श्री राम बना गये।
अध्यक्ष सरला शर्मा ने कहा आज विज्ञान का युग है सब तकनीकी पर आधारित हैं भौतिक संसाधनों में चारों ओर दुख निराशा स्पर्धा की भावना बढ़ती जा रहे हैं तब दर्शन का महत्व बढ़ता जा रहा है।
चतुर्थ सत्र में विषय का प्रवर्तन डॉ. जी.आर. सोनी महासचिव गुरु घासीदास साहित्य अकादमी रायपुर छत्तीसगढ़ ने किया और गुरु घासीदास का चिंतन एवं अन्य संतों का दार्शनिक चिंतन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए, कहा गुरु घासीदास छत्तीसगढ़ में सतनामी संप्रदाय के प्रणेता है उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों सोचने की भावना व कमर्कांड को दूर करने का प्रयास किया और सतनाम पंथ की स्थापना की जिसका मूल सिद्धांत था सच्चा नाम।
सत्र की अध्यक्षता डॉ. संदीप अवस्थी ने की वह संतों के दार्शनिक चिंतन पर प्रकाश डालते हुए कहा आप घर के दायित्वों को पूरा करते हुए भी योगी बन सकते हैं। सच्चा गुरु कभी परिवार का त्याग करने की बात नहीं करते, परिवार में रहते हुए ईश्वर आराधना पर बल देते हैं।
चतुर्थ सत्र में प्रजापति ब्रह्मकुमारी से उपस्थित प्राची बहन ने ब्रह्म दर्शन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा किसान जितना अच्छा बीज होता है उतना ही अच्छा फसल काटता है आप दूसरे की उपलब्धियों पर अगर ईर्ष्या करते हैं तो विचार करें आपने बीज क्या बोया था। जब हमारी ऊर्जा खत्म होती है तब वह दूसरे पर अवलंबित होती है आपसी वैमनस्य पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा सब में एक ही आत्मा है वह जात-पात का भेदभाव कैसा।
दूसरे दिन मुकेश कुमार बर्मन आधुनिक शिक्षा के परिपेक्ष में गौतम बुध के दार्शनिक चिंतन की भूमिका। लोकेश्वर प्रसाद सिन्हा- संत काव्य में दलित चेतना। डॉ. शैलजा पवार- स्वामी विवेकानंद का शिक्षा दर्शन एवं नारी समानता।
डॉ. शमा ए. बेग छत्तीसगढ़ संस्कृति पर आधारित गुरु घासीदास का वैज्ञानिक दर्शन पर अपना शोध पत्र पढा श्रीमती मोहना सुशांत पंडित सहायक प्राध्यापिका शिक्षा विभाग महिला महाविद्यालय भिलाई व सहायक प्राध्यापक तुकेश राजनांदगांव ने संगोश्ठी का दृश्टिकोण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में देश भर से 125 सहायक प्राध्यापक, शोधार्थी व विद्याथिर्यों ने भाग लिया। कार्यक्रम में मंच संचालन डॉ. शमा ए. बेग विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलाजी वह डॉ. नीलम गांधी विभागाध्यक्ष वाणिज्य ने किया।

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