भिलाई। वैसे तो झाइयां किसी भी उम्र में हो सकती हैं पर आम तौर पर यह गर्भावस्था के दौरान ही ज्यादा परेशान करती है। डाक्टरी भाषा में इसे मेलाज्मा कहते हैं। झाइयां अत्यधिक धूप के कारण भी हो सकती हैं। अधिकांश लोग इसका घरेलू उपचार करने की कोशिश करते हैं पर अंततः कोई नतीजा नहीं निकलता। इन घरेलू उपचारों से कभी-कभी तो रोग इतना उग्र हो जाता है कि सही इलाज से भी इसे ठीक करने में काफी वक्त लग जाता है। यह कहना है हाइटेक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ ऐश्वर्या पाटिल महाडिक का।डॉ ऐश्वर्या बताती हैं कि मेलाज्मा गाल पर चीक-बोन्स के आसपास, नाक पर, माथे पर, बाहों पर हो सकती है। ये गहरे भूरे या कत्थई रंग के धब्बे या पैच होते हैं। झाइयों के कारण अनेक लोगों का सार्वजनिक जीवन प्रभावित हो जाता है। वे बिना हेवी मेकअप के कहीं भी जाने मे कतराने लगते हैं। सोशल मीडिया डाक्टरों की सलाह पर कई लोग इसपर तरह-तरह की चीजें लगा लेते हैं जिसका अकसर कोई लाभ तो होता ही नहीं है बल्कि स्थिति और बिगड़ जाती है। धब्बे या पैच का रंग और गहरा हो जाता है। कभी-कभी त्वचा झुलस जाती है। बाजार में ओवर द काउंटर मिलने वाली दवाइयां भी नुकसान कर सकती हैं।
डॉ ऐश्वर्या बताती हैं कि झाइयों का उपचार हमेशा किसी योग्य डर्मेटोलॉजिस्ट से ही करवाना चाहिए। झाइयां तीन प्रकार की होती हैं। एपीडर्मल, डर्मल और मिक्स। रोग के प्रकार के आधार पर ही इलाज का चुनाव किया जाता है। कुछ झाइयां केवल मलहम से ही ठीक हो जाती है। किसी किसी मामले में हार्मोन थेरेपी की जरूरत पड़ती है। झाइयों के लिए केमिकल पील का भी उपयोग किया जाता है। पर इसे योग्य चर्मरोग विशेषज्ञ की देखरेख में ही करवाना चाहिए। इसके अलावा माइक्रो नीडलिंग भी झाइयों के इलाज की एक पद्धति है।
उन्होंने बताया कि एक बार झाइयों के ठीक होने के बाद इनके दोबारा उभरने का खतरा होता है। इससे बचने के लिए पर्याप्त पानी का सेवन करना चाहिए। साथ ही धूप से त्वचा को बचाने के लिए सनस्क्रीन का उपयोग करना चाहिए। यहां तक कि घर में रहने के दौरान भी यदि आपके शरीर को धूप लगती है तो सनस्क्रीन का प्रयोग करना चाहिए। सनस्क्रीन का उपयोग 10 बजे से 5 बजे के बीच हर दूसरे या तीसरे घंटे में किया जाना चाहिए।