भिलाई। शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में इस बार हमने कोशिश की है कुछ ऐसे संस्मरणों को साझा करने की जिसने या तो जिन्दगी को नई दिशा दी या फिर चरित्र निर्माण की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन कर जीवन का हिस्सा बन गए। इनमें से चुनिंदा संस्मरणों को हमने शिक्षक दिवस पर ही साझा कर दिया था। कुछ अन्य चुने हुए संस्मरणों को हम यहां साझा कर रहे हैं। हमारे इस प्रयास में श्री शंकराचार्य महाविद्यालय भिलाई एवं स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय भिलाई का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हम उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। हम आशा करते हैं कि इन संस्मरणों से विद्यार्थियों के साथ ही शिक्षकों को भी प्रेरणा मिलेगी।
मेरी पहली गुरु मेरी माँ – डॉ हंसा शुक्ला
उन्होंने ही मुझे सिखाया कि कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए। एक बार की बात है। मेरी उम्र कोई दस साल की रही होगी। माँ किराना दुकान से सामान लेकर आई जिसमें दुकानदार ने गलती से एक नारियल बिस्किट का पैकेट अतिरिक्त दे दिया था। उस उम्र में मुफ्त में बिस्किट का पैकेट मिलना जैसे कोई खजाना मिल गया हो। मैं बोली माँ इसे वापस मत करिए। दुकानदार को तो पता भी नहीं होगा कि उसने गलती से मुफ्त में ये बिस्किट का पैकेट आपको दिया है। माँ ने कहा बेटा उसे नही मालूम लेकिन मुझे तो मालूम है कि उसने गलती से ये पैकेट दिया है। मैं इसे वापस करके आती हूं। ये एक प्रकार से चोरी ही है। बेटा, कभी किसी की गलती का फायदा नहीं उठाना चाहिए। हमारा मन तो जानता है कि हम गलत काम कर रहे हैं। गलत काम का फल कभी भी अच्छा नहीं होता। माँ के उस व्यवहार ने मुझे सिखाया की हमें कभी दूसरे को गलती से भी धोखा नहीं देना चाहिए। कोई जाने या ना जाने पर हमारा मन तो जानता है कि हमने अपने फायदे के लिए गलत काम किया। मेरी आज भी कोशिश होती है कि मेरे कारण गलती से भी किसी का नुकसान ना हो। मैं अपनी माँ को नमन करती हूँ जिनके कारण ही मैं सही-गलत का फर्क कर सही राह पर चलने के काबिल बनी।
स्वामी श्री स्वरूपानंद महाविद्यालय, हुडको भिलाई
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उनकी वजह से कठिन सा लगने वाला गणित हुआ आसान – ज्योति शर्मा
बात उन दिनों की है जब मैं बीएसपी सीनियर सेकण्डरी स्कूल सेक्टर-10 में कक्षा 9वीं की छात्रा थी। श्री एलपी मिश्रा हमें गणित पढ़ाया करते थे। उनके पढ़ाने का अंदाज तो निराला था ही, उनका व्यक्ति, उनकी बोलचाल, उनकी चालढाल में भी कुछ ऐसा था कि वे बरबस आकर्षण का केन्द्र बने रहते। साल भर में उन्होंने गणित से ऐसी दोस्ती करा दी कि कठिन सा लगने वाला यह विषय आसान हो गया। उनकी प्रेरणा से ही 11वीं में मैने गणित का विषय चुना। सुबह का पहला पीरियड गणित का ही होता था। यह पीरियड उनका होता था। यह पीरियड अच्छा निकलता तो पूरा दिन सार्थक हो जाता। वे जितने स्टाइलिश थे, उतने ही अनुशासन पसंद। उनके सान्निध्य में हमने गणित के अलावा भी ऐसी अनेक बातें सीखीं जो आज तक हमारे काम आ रही है।
निदेशक, देवसंस्कृति कालेज ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी, खपरी
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कोशिश ईमानदार हो तो सफलता मिलकर रहती है – राज सिंह
शिक्षक दिवस पर मैं अपने विचार अपनी प्रेरणास्रोत डॉ रक्षा सिंह मैम को समर्पित करना चाहूंगा। वे हमारा अभिमान हैं। कालेज के दिनों में वे हमारी सबसे पसंदीदा टीचर थीं। उन्होंने ही हमें सिखाया था कि सफलता की गारंटी चाहते तो कोशिश पूरी शिद्दत से करो। वे कहती थीं कि यदि किसी भी कार्य को हमने अपना सौ फीसद दिया तो हमारी सफलता को कोई रोक नहीं सकता। उन्होंने स्वयं यही किया था और एक सब्जेक्ट टीचर से उठकर प्राचार्य और फिर निदेशक के पद तक जा पहुंचीं थीं। उनके नेतृत्व में महाविद्यालय ने विश्वविद्यालय में कई कीर्तिमान गढ़े।
पूर्व विद्यार्थी, श्री शंकराचार्य महाविद्यालय
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उन्होंने सिखाया शिक्षक होने का सही मतलब – डॉ नीता शर्मा
शिक्षक दिवस के अवसर पर मैं आज डॉ सविता सिंह को याद करना चाहूंगी। विज्ञान महाविद्यालय रायपुर में प्राध्यापक डॉ सविता सिंह में मैने एक सच्चे शिक्षक की झलक देखी थी। वे मेरी पीएचडी गाइड नहीं थीं। बावजूद इसके उन्होंने मेरे साथ रातें जागी, घंटों साथ बैठकर अध्ययन किया, अपने मार्गदर्शन में मेरा शोध पूरा करवाया। जब कभी मैं थक हार कर शोध को बीच में छोड़ देने का फैसला कर लेती, वे मेरा इरादा बदल देतीं। हम नए सिरे से पूरे जोश के साथ अपने काम में जुट जाते। उनका सान्निध्य एक मार्गदर्शक का होने के साथ साथ, एक मित्र और एक बड़ी बहन जैसा था। उनमें मैने एक सच्चे शिक्षक की झलक देखी जो विद्यार्थी का हाथ पकड़कर उसे कठिन रास्तों पर चलना सिखाता है। काश में उनके जैसा बन पाऊं।
श्री शंकराचार्य महाविद्यालय, जुनवानी, भिलाई
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ईश्वर से हमेशा मांगना और शिकायत करना छोड़ें – हेमा शर्मा
हमारे घर के पास ही एक गायत्री मंदिर था। हमारा वहां आना जाना लगा ही रहता था। एक बार की बात है, अनेक साधु संत वहां आए हुए थे। हम भी उनका प्रवचन सुनने जाया करते थे। एक ऐसे ही प्रवचन के दौरान एक संत ने उन लोगों को कड़ी फटकार लगाई जो ईश्वर के पास हमेशा कुछ न कुछ मांगने जाते हैं। जो जीवन की दुश्वारियों के लिए ईश्वर को जिम्मेदार ठहराते हैं और कभी कभी तो ईश्वर से कुछ मांगने के साथ ही मांग पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाने का प्रलोभन भी देते हैं। संत ने कहा कि ईश्वर हमारे लिए माता-पिता के समान हैं। जिस तरह माता-पिता अपने बच्चों की इच्छा और जरूरतों को बिना मांगे ही पूरी करते हैं उसी तरह परम पिता परमेश्वर भी अपनी संतानों को बिना मांगे ही बहुत कुछ दे देते हैं। जिस तरह माता-पिता को पता होता है कि उनकी संतान के लिए सबसे अच्छा क्या है, उसी तरह ईश्वर को भी पता है कि उसकी संतानों को कब क्या दिया जाना चाहिए। इसलिए ईश्वर ने जो दिया, उसपर संतोष करें और उसके लिए कृतज्ञता ज्ञापित करें। शिकवा शिकायत और मांगने की प्रवृत्ति का तुरन्त त्याग करें।
सरस्वती शिशु मंदिर, कुसमुण्डा, कोरबा
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गूगल कभी नहीं ले सकता शिक्षक का स्थान- कुलशान भाटिया
शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षित तो करते ही हैं, साथ ही अपने अनुभवों का लाभ भी उनपर न्यौछावर कर देते हैं। कोई गूगल, कोई भी टेक्नोलॉजी कभी भी इसका स्थान नहीं ले सकती। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान टीचर्स ने केवल अपने विद्यार्थियों का भला करने के लिए नई टेक्नोलॉजी सीखी, उसमें निरंतर सुधार करते रहे। बच्चों को नुकसान न हो, इसके लिए टीचर्स किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। यह मैंने अपने महाविद्यालय में देखा है। एक नहीं बल्कि लगभग सभी टीचर्स के अन्दर मैंने यह जज्बा देखा है। जिस तरह माता-पिता अपने बच्चों के लिए सौ-सौ कुर्बानियां देते हैं, ठीक उसी तरह शिक्षक भी अपने विद्यार्थियों के हित के लिए किसी भी सीमा तक जाने के लिए सदैव तैयार रहते हैं। शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए एक दिन काफी नहीं है, उन्हें तो प्रतिदिन, प्रतिपल स्मरण करते रहना चाहिए।
श्रीशंकराचार्य महाविद्यालय, भिलाई
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घर और बाहर बच्चे का आचरण एक जैसा हो – मनीषा सहस्रबुद्धे
मेरी बड़ी बेटी क्लास 4 में थी। पढ़ने में बहुत होशियार थी और क्लास टीचर की लाडली भी। उसके बारे में कभी किसी बुरी बात में विश्वास नहीं कर सकती थी। जो मैं वाकया बता रही हूं उसे देख कर मुझे लगा कि टीचर र्सिफ टीचर नहीं होती कभी-कभी वो विद्यार्थी की मां भी बन जाती है। बिटिया के स्कूल में पेरंट टीचर मिटींग थी। मैं भी गई थी। उसकी क्लास टीचर से मिली और उनसे बेटी के बारे में बताने लगी की ये सुनती नहीं है और उल्टा ज़बाब देती है। टीचर तो विश्वास करने तैयार को नहीं थी। उन्होंने बेटी को बुलाया और पूछा पर वो चुपचाप खड़ी रही। उन्होंने बेटी को समझाया और मैं घर आ गयी। घर आकर बेटी ने मुझसे कहा कि मम्मी आपने ऐसा क्यूं बताया। बात आई गई हो गयी। दूसरे दिन बेटी स्कूल गयी तो वहां असेंबली में प्रिंसिपल मैडम ने बेटी को बुलाया और प्रेयर करने को बोला। बेटी ने जब प्रार्थना कर ली तो उन्होंने कहा कि जितनी विनम्रता से हम प्रार्थना करते हैं, वैसे ही अपनी मां से बात किया करो। उन्होंने सजा भी दी। बेटी रोने लगी तो उसकी क्लास टीचर तुंरत उसके पास आई और उसको अपने पास बिठाकर समझाने लगी। उन्होंने मुझे फोन कर के सभी बातें बता दी। उन्होंने बताया कि उनसे शिकायत मिलने के बाद वे प्राचार्य से मिली थीं और पूरी बातें उन्हें बता दी थी। उन्होंने कहा कि उसने ऐसा केवल इसलिए किया कि बच्चा बाहर जितना अच्छा आचरण करता है, वह ध्यान रखे कि घर पर भी उसका आचरण अच्छा हो। किसी ने उनके स्टूडेन्ट को बुरा कहा तो उन्हें ठेस पहुंचती है। उनकी ये बात मेरे दिल को छू गई।
एक सेल्स मैन को मौका देकर बदल दी उसकी जिन्दगी – विकास चन्द्र शर्मा
वह तो घूम-घूम कर चाय पत्ती बेचता था। एक दिन वह एक कालेज में चाय पत्ती बेचने के लिए पहुंच गया। वहां के निदेशक की उसपर नजर पड़ी तो उन्होंने उसे बुला भेजा। उन्होंने सीधा सवाल पूछा, पढ़ना चाहते हो। बालक ने कहा हां। उस समय उसकी उम्र लगभग 18 वर्ष थी। निदेशक ने फिर पूछा, सचमुच तुम पढ़ना चाहते हो। बालक ने अपना जवाब दोहराया। साथ ही उसने कहा कि वह एक साथ फीस नहीं दे पाएगा। फीस छोटी-छोटी किस्तों में हुई तो वह विचार कर सकता है। निदेशक ने उसे शिक्षण शुल्क में भारी छूट के साथ उसे दाखिला दिला दिया। यह छूट बीएससी की पूरी पढ़ाई के दौरान जारी रही। आगे युवक ने एमएससी भी कर लिया। आज वह बालक श्री शंकराचार्य महाविद्यालय में बायोकेमिस्ट्री विभाग का एचओडी है।
श्री शंकराचार्य महाविद्यालय, जुनवानी, भिलाई
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विद्यार्थी को गढ़ने में शिक्षक का बड़ा योगदान – शगुफ्ता सिद्दीकी
सच्चा शिक्षक अपने विद्यार्थियों को केवल पाठ ही नहीं पढ़ाते बल्कि अपने आचरण, अपने व्यवहार और अपनी समझदारी से उसका सम्पूर्ण चरित्र निर्माण भी करते हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर मुझे अपने स्कूल की टीचर मधु घटक मैडम की बरबस याद आती है। यूं तो सभी टीचरों से मुझे हमेशा बहुत प्यार मिला है, पर मधु मैडम की बात ही और थी। वह प्यार, वह अपनापन, समझाने का वह तरीका, लिखने-बोलने की उनकी शैली, मुझे बेहद प्रभावित करती थी। उन्होंने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया और निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती रही। आज भी जब कभी आंखें बंद कर उन्हें याद करती हूँ तो मन में खुशी की लहर दौड़ जाती है, आंखें नम हो जाती हैं।
श्री शंकराचार्य महाविद्यालय, भिलाई
शिक्षक ही नहीं, परिजन भी निभाते हैं शिक्षक की भूमिका- सरिता
जीवन को गढ़ने में माता-पिता के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। कदम कदम पर सही निर्णय कर बच्चे को निरंतर आगे बढ़ाने वाले, उनके लिए सही गुरू तलाशने वाले माता-पिता उसके पहले गुरू होते हैं। मेरे जीवन में भी माता-पिता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मैं खुशकिस्मत हूँ कि पति के रूप में भी मुझे एक मित्र, एक सहचर एवं एक सच्चे शिक्षक की प्राप्ति हुई। उन्होंने कदम कदम पर न केवल साथ दिया बल्कि उचित मार्गदर्शन एवं सहयोग भी प्रदान किया। मैं आज जो कुछ भी हूँ, अपने माता-पिता एवं पति की वजह से हूँ।
सरिता झा शरीफ