हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में वर्ल्ड फिजियोथेरेपी दिवस
भिलाई। अस्थमा, सीओपीडी, सिस्टिक फाइब्रोसिस, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी में चेस्ट फिजियोथेरेपी का आम तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। कोरोना संक्रमित लोगों के इलाज में भी यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोरोना के गंभीर मरीजों को चेस्ट फिजियोथेरेपी दिए जाने की सलाह खुद वर्ल्ड कंफेडरेशन फॉर फिजिकल थेरेपी ने अपनी पत्रिका में भी दी है। फेफड़ों का अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करना जरूरी है। वर्ल्ड फिजियोथेरेपी दिवस पर आज हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल की फिजियोथेरेपिस्ट डॉ आबिया खान ने उक्त बातें कहीं।डॉ आबिया ने बताया कि वैसे तो स्वस्थ लोगों को भी सांस की कुछ कसरतें नियमित रूप से करनी चाहिए ताकि पूरक-रेचक की पूरी क्षमता बनी रहे। पर बीमारी की स्थिति में ऐसा केवल चिकित्सक की सलाह पर ही किया जाना चाहिए। कोरोना का संबंध भी फेफड़ों से है। ‘वर्ल्ड कंफेडरेशन फॉर फिजिकल थेरेपी’ अनुसार कोरोना के शुरुआती लक्षणों के दिखते ही एकदम थेरेपी नहीं दी जानी चाहिए। कोरोना के गंभीर मरीजों को सांस लेने में दिक्कत होने पर चेस्ट फिजियोथेरेपी की सलाह दी जा सकती है। इस थेरेपी में पॉस्च्युरल ड्रेनेज, चेस्ट परक्यूजन, चेस्ट वाइब्रेशन, टर्निंग, डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज जैसी कई थेरेपी शामिल होती हैं। इनसे फेफड़ों में जमा बलगम बाहर निकालने में मदद मिलती है।
डॉ आबिया ने बताया कि बहुत जरूरी होने पर भी कुछ मामलों में चेस्ट थेरेपी नहीं दी जा सकती। यदि मरीज की पसली मे चोट हो, सिर या गर्दन में चोट हो, रीढ़ की हड्डी जख्मी हो, फेफड़े पूरी तरह से खराब हो चुके हों, अस्थमा का केस बिगड़ चुका हो, पल्मोनरी एम्बोलिज्म, फेफड़ों से रक्तस्राव हो रहा हो तो चेस्ट थेरेपी कतई नहीं दी जानी चाहिए।