बेमेतरा। संभागायुक्त दुर्ग टीसी महावर की कविताओं पर केंद्रित किताब “कविता का नया रूपाकार” का लोकार्पण हिंदी कविता के महत्वपूर्ण कवि विनोद कुमार शुक्ल के हाथों हुआ। इस पुस्तक में श्री महावर के कविता संग्रह पर 30 आलोचकों, सुधि पाठकों और मित्रों की प्रतिक्रियाओं को सम्मिलित किया गया है। इनका चयन सुप्रसिद्ध कथाकार श्री शशांक ने किया है। किताब का प्रकाशन “पहले पहल” प्रकाशन भोपाल द्वारा किया गया है। उल्लेखनीय है कि श्री महावर के अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें विस्मित न होना, इतना ही नमक, नदी के लिए सोचो, हिज्जे सुधारता है चांद, शब्दों से परे, शामिल हैं। उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय स्मृति पुरस्कार, अंबिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार तथा पंजाब कला साहित्य अकादमी राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
विमोचन के बाद कवि विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि कविताओं में स्मृतियों का लौट आना अच्छा लगता है। स्मृतियों में लौटना सामाजिकता की गहराई को प्रकट करता है। त्रिलोक महावर की कविताओं में स्थानीयता के बिम्ब हैं, जिसे उन्होंने एक तरह से स्थायी बना दिया है। पायली, सोली जैसे नापने की अनेक प्रचलित स्थानीय मापक घटकों का धीरे-धीरे विलुप्त हो जाना और महावर की कविताओं में उन पुरानी चीजों का वापस लौट आना, मुझे प्रीतिकर लगता है।
सुप्रसिद्ध कवि तथा लेखक संजीव बख्शी ने कहा कि त्रिलोक महावर की कविताओं पर विमर्श में तीस अलोचकों ने अपनी बात कही है, जिसे इस किताब में संकलित किया गया है। ऐसा काम संभवतः यदा-कदा ही होता है कि कविताओं पर जो अपनी बात कहें उसे भी संकलित कर लिया जाए।’’
कवि-समीक्षक रमेश अनुपम ने कहा कि श्री महावर की कविताओं में ‘स्थानीयता’ कहीं गहरे रूप में विद्यमान है। वे कविता की दुनिया में बार-बार इसलिए भी लौटना पसंद करते हैं क्योंकि वही उनकी अपनी दुनिया है। तीस सुधि पाठकों की आंख से त्रिलोक महावर की कविताओं को देखना, उससे गुजरना और उसमें कहीं-कहीं ठहर जाना मेरे लिए किसी विलक्षण अनुभव से कम नहीं है।
इस अवसर पर कवि श्री महावर ने कहा कि काव्य यात्रा की शुरूआत में बस्तर के जंगल पहाड़, नदी, झरने और आदिवासी जन-जीवन की छवियाँ मेरी कविता में सहज रूप में आई है। समय के साथ-साथ जीवन के विरल अनुभवों ने मुझे जीवन और समाज को देखने की नई दृष्टि प्रदान की। जिसके फलस्वरूप मेरी कविताओं ने समाज की अनेक प्रचलित अप्रचलित छवियों के लिए ‘स्पेस’ निर्मित हुई। नौकरी में रहते हुए तथा अनेक स्थानों पर स्थनांतरित होते हुए जीवन, समाज और प्रकृति को अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला, जिसमें मेरे अनुभव संसार को समृद्ध किया है। प्रकाशन के रूप में ‘‘पहले पहल’’ प्रकाशन के संपादक श्री महेन्द्र गगन ने कहा कि ‘‘श्री महावर की कविताओं में विविधता है। स्थानीयता वैश्विकता की ओर पहुंचती है। यह संकलन काफी महत्वपूर्ण है।’’