भिलाई। जवान बेटे की अर्थी को कंधा देने वाले पिता के दुखों को बयान करने के लिए शब्द नहीं मिलते। वहीं विवाह के महज डेढ़ साल के भीतर पति के अकास्मिक निधन के बाद पहाड़ जैसी जिंदगी को सहना एक स्त्री के लिए पल-पल मरने के समान है। ऐसे में बहू के प्रति ससुर के उत्तरदायित्व की अनुकरणीय मिसाल ने क्षत्रिय समाज में एक आदर्श को स्थापित किया है। इस पिता ने सजल नयनों से अपनी बहू को बेटी मानकर उसका कन्यादान कर उसका घर एक बार फिर बसा दिया।