भिलाई। आंखों में पीलापन, पेट फूलना, पैरों में सूजन तथा खून की उल्टियां होना सभी लिवर रोगों के लक्षण हो सकते हैं। ऐसा कोई भी लक्षण प्रकट होने पर तत्काल लिवर विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए। लम्बा खिंचने पर ये बीमारियां न केवल जटिल हो जाती हैं बल्कि इनके इलाज में समय भी बहुत ज्यादा लगता है। स्थिति गंभीर होने पर रोगी की मौत भी हो सकती है। देश में प्रतिवर्ष 2 लाख 64 हजार से अधिक रोगियों की मौत लिवर फेल हो जाने के कारण होती है। यह आंकड़े 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में दिए गए हैं।
हाइटेक बीएसआर सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट एवं हेपाटोलॉजिस्ट डॉ अमोल शिन्दे ने बताया कि शराब, खराब खान पान और मोटापा लीवर रोगों के मूल कारणों में से हैं। मधुमेह के रोगियों को भी सतर्क रहना चाहिए क्योंकि मधुमेह के 20 फीसद रोगियों के लिवर में समस्या देखी जाती है। हेपेटाइटिस बी और सी वायरस का संक्रमण भी लिवर फेल होने का कारण बनते हैं। कुछ जड़ी-बूटी वाली दवाइयां भी लिवर के लिए घातक सिद्ध होती हैं अतः लंबे समय तक इनका सेवन करने से बचना चाहिए।
बचाव की चर्चा करते हुए डॉ शिन्दे कहते हैं कि लिवर फंक्शन की जांच बेहद आसान है। लिवर की जांच में रक्त में बिलिरुबिन, अल्बुमिन की मात्रा का पता लगाया जाता है। शरीर में खून कितना पतला है इसकी भी जांच की जाती है। खून का थक्का बनाने वाला पदार्थ भी लिवर ही बनाता है। एंडोस्कोपी द्वारा अन्न की नली की नसों की जांच की जाती है। इन नसों के फैल जाने के कारण भी उल्टी में खून आ जाता है। इसके अलावा लिवर की सोनोग्राफी कर उसमें सूजन आदि का पता लगाया जाता है। लिवर का सख्त हो जाना (सिरोसिस), फैटी लिवर, लिवर के कारण पेट में पानी भर जाना आदि का पता लगाया जाता है। इसके आधार पर इलाज की रूपरेखा तैयार की जाती है।
लिवर का रोग होने पर डाक्टर की सलाह पर पूर्ण अमल करना चाहिए। इसमें शराब का सेवन तत्काल बंद करना, भोजन में नमक कम करना, जड़ी-बूटी वाली औषधियों का सेवन बंद कर देना, डाक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा नहीं लेना और नियमित रूप से डाक्टरी जांच करवाना शामिल है।
सावधानी के तौर पर उन्होंने कहा कि साल में कम से कम एक बार लिवर की जांच करवा लेना चाहिए ताकि रोग का आरंभिक चरण में पता लगाया जा सके। 50 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए बेहतर होगा कि वे साल में दो बार लिवर फंक्शन की जांच करवाएं। लिवर फेल होने पर प्रत्यारोपण ही एकमात्र रास्ता बचता है। लिवर चूंकि शरीर में एक ही होता है अतः स्वस्थ दानदाता के लिवर का एक हिस्सा लेकर ही प्रत्यारोपण करना होता है।