भिलाई। छत्तीसगढ़ की संस्कृति प्राणि मात्र के प्रति करुणा जगाती है। उनका यह करूणा भाव प्रवासी पक्षियों के मामले में भी सामने आता है। गिधवा-परसदा पक्षी महोत्सव को मिला प्रतिसाद इसका नमूना है। महासमुन्द गरियाबंद की सीमा पर ग्राम लचकेरा के आसपास भी प्रवासी पक्षी बड़ी संख्या में आते हैं। वहां के ग्रामीणों ने इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए कड़े नियम बना रखे हैं। इन पक्षियों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने पर भी वहां हजार रुपए तक जुर्माना देना पड़ता है। गिधवा परसदा पक्षी महोत्सव में एक नया नारा उभर कर सामने आया है। यह नारा है हमर चिरई-हमर दुवारी, हम करबो एकर रखवारी। यहां भी ग्रामीणों ने इन पक्षियों को सुरक्षित प्रवास देने की जिम्मेदारी उठा ली है। इनमें से अधिकांश पक्षी जलीय जीव-जन्तुओं पर ही अपने आहार के लिए निर्भर रहते हैं। कुछ परिन्दे आसपास के खेतों तक पहुंच जाते हैं पर ग्रामीण उनपर गोपन आदि का प्रयोग नहीं करते। उन्होंने केवल इतना कर रखा है कि खेतों के बीच बड़ी संख्या में बिजूके (काक-भगोड़ा) लगा रखे हैं। रंग बिरंगे परिधनों में इन बिजूखों को दूर से देखने पर इंसान के खड़े होने का भ्रम होता है।
ग्रामीणों ने बताया कि ये मेहमान पक्षी महीना-दो महीने के लिए आते हैं। इस दौरान पक्षी प्रेमी एवं पर्यटक भी यहां आते हैं। इससे रोजगार के नए रास्ते खुल सकते हैं। इन पक्षियों को परेशान करना किसी भी रूप में हमारे हित में नहीं है। वैसे भी ये दोनों वेटलैंड गांव से काफी बाहर हैं। इन स्थानों पर छिछला पानी है जो बारहों महीने भरा रहता है। छोटी छोटी मछलियां भी खूब हैं। यही इन पंछियों के लिए सबसे बड़े आकर्षण हैं। खेतों में इस समय कोई खास काम नहीं रहता। इसलिए ये पक्षी बिना किसी विघ्न के यहां जलविहार करते हैं।
इन दोनों पक्षी विहारों के सामने आने से अब छत्तीसगढ़ एक नए रूप में पर्यटन के नक्शे पर सामने आ रहा है। सरकार इन दोनों जगहों पर पर्यटन विकास की संभावनाएं भी तलाश रही है। पक्षी महोत्सव के पहले दिन यहां पहुंचे हजारों स्थानीय पर्यटकों ने इसकी राह को आसान बना दिया है। गिधवा और परसदा के ग्रामीणों ने पर्यटकों को ठहराने के लिए निजी तौर पर व्यवस्था की है। कुछ लोगों ने अपने घरों में भी पेइंग गेस्ट अकोमोडेशन देने की योजना बनाई है।