भिलाई। टीबी के मरीजों में कोरोना होने की संभावना जहां 2.1 गुना ज्यादा होती है वहीं कोरोना मरीजों को भी टीबी अपनी चपेट में ले सकता है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दोनों ही प्रकार के मरीजों में दूसरी बीमारी के लक्षण की जांच करना अनिवार्य कर दिया है। टीबी के मरीजों से भी कहा गया है कि वे अपना इलाज किसी भी कीमत पर बंद न होने दें और संक्रमण रोकने के सभी तरीकों पर सख्ती से अमल करें।हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ प्रतीक नरेश कौशिक ने बताया कि दोनों ही बीमारियां फेफड़ों पर हमला करती हैं। कोरोना जहां एक वायरस (विषाणु) के कारण होता है वहीं टीबी बैक्टीरिया (जीवाणु) जनित रोग है। दोनों ही अतिसूक्ष्म हैं और सांस के मार्ग से हमला करते हैं। इनमें से कोई भी एक बीमारी हो तो दूसरे के होने की संभावना बढ़ जाती है। डॉ कौशिक 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस के मौके पर चर्चा कर रहे थे।
टीबी एक्टिव और लेटेंट दो तरह की होती है। पहले में टीबी के लक्षण होते हैं जबकि दूसरे में टीबी का संक्रमण तो होता है पर लक्षण नहीं होते। पर कोरोना की उपस्थिति में दोनों भयंकर रूप धारण कर सकते हैं। इसलिए तीन हफ्ते से जारी खांसी, बुखार, वजन का गिरना, खांसी में रक्त का आना, सीने में दर्द, भूख न लगना जैसे लक्षण होने पर तत्काल जांच करवानी चाहिए। यह जांच बेहद आसान है जिसमें त्वचा, रक्त, थूक तथा इमेजिंग का उपयोग किया जाता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, विभिन्न अध्ययनों में कोविड-19 के मरीजों में टीबी की मौजूदगी 0.37%-4.47% पाया गया है।
डॉ कौशिक ने कहा कि टीबी ज्यादा खतरनाक बीमारी है जो शरीर को भीतर से चाट जाती है। 2019 में देश में टीबी के 26.9 लाख नए मरीज सामने आए थे। टीबी मरीजों को हमेशा मास्क का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा थूकने के लिए पालीथीन बैग का उपयोग करना चाहिए। इसे फिनाइल के साथ बंद डस्टबिन में फेंकना चाहिए। यही सावधानियां कोविड संक्रमण में भी बरती जानी चाहिए। दोनों ही प्रकार की टीबी में इलाज का निरंतर जारी रहना जरूरी है।