दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय एवं नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेस इंडिया, आईआईटी मुंबई चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय में एक ऑनलाईन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वर्ष 2021 हेतु भारत सरकार द्वारा विषय विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार का भविष्य: शिक्षा कौशल एवं कार्य पर प्रभाव विषय का चयन किया गया है। कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ. अनिल कुमार एवं डॉ. एके सिंह थे। कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ अनिल कुमार ने किया। डॉ ए.के. सिंह ने विज्ञान दिवस के थीम एवं इसके इतिहास पर विस्तृत प्रकाश डाला। कार्यक्रम संयोजक डॉ अनुपमा अस्थाना ने स्वागत भाषण में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के औचित्य एवं युवाओं के बीच विज्ञान से संबंधित जागृति उत्पन्न करने पर जोर दिया। महाविद्यालय के प्राचार्य एवं कार्यक्रम के संरक्षक डॉ आर.एन. सिंह ने महाविद्यालय के युवा वैज्ञानिकों को विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार हेतु प्रोत्साहित किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ एस.के. सिंह, कुलपति बस्तर विश्वविद्यालय जगदलपुर ने इस अवसर पर रमन इफेक्ट के संबंध में तथा विज्ञान के क्षेत्र में अनेक वैज्ञानिकों के योगदान पर महत्वपूर्ण जानकारियां दी। इसके पश्चात् प्रोफेसर रमेश एल गरदास, आईआईटी मद्रास ने ग्रीन सॉल्वेंट पर आमंत्रित व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि वैश्विक प्रकाशन में भारत तीसरे स्थान पर है एवं सस्टेनेबल डेव्हलपमेंट तथा साइंस के विद्यार्थियों के लिए विज्ञान के क्षेत्र में रिसर्च एवं रोजगार हेतु नई-नई संभावनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर के प्रोफेसर शैलेन्द्र सराफ ने इंटर डिसीप्लिनरी साइंस तथा विज्ञान की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने औद्योगिकीकरण, टीचिंग लर्निंग तथा रिसर्च पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्री-कोविड एण्ड पोस्ट कोविड प्रभाव पर विस्तृत रूप से जानकारी दी।
नासी के प्रोफेसर अनिल कुमार सिंह ने कार्यक्रम की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की तथा युवा वैज्ञानिकों को सामाजिक विकास हेतु अपनी सहभागिता सुनिष्चित करने का आव्हान किया। कार्यक्रम के अंत में रसायन शास्त्र की डॉ सुनीता मैथ्यू ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम के आयोजन में विज्ञान संकाय के विभागाध्यक्ष, डॉ अलका तिवारी, डॉ अजय पिल्लई एवं विज्ञान संकाय के प्राध्यापकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस ऑनलाईन कार्यक्रम में 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।