दुर्ग। जल संरक्षण हम सभी का नैतिक दायित्व है। हमारे आगे आने वाली पीढ़ी को विरासत के रूप में हमें सतही एवं भूमिगत जल के भण्डार देने का प्रयास करना चाहिए। ये उद्गार हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग के अधिष्ठाता छात्र कल्याण, डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने आज विश्व जल दिवस पर व्यक्त कियें। डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि शहरीकरण के फलस्वरूप आज भारत सहित विश्व के अनेक देशों में भूमिगत जल स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। जल स्तर में इस प्रकार की गिरावट के लिए हम सभी समान रूप से जिम्मेदार है।जल संरक्षण के विभिन्न उपायों पर चर्चा करते हुए डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि प्रत्येक नागरिक को जल संरक्षण हेतु रेन वाटर हार्वेस्ंिटंग जैसे उपायों पर अमल करना चाहिए। हमारा छोटासा प्रयास भूमिगत जल भण्डारण में महत्वपूर्ण योगदान सिद्ध हो सकता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली स्थापित करने के दौरान हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रदूषित सतही जल हमारी असावधानी के कारण भूमि में प्रवेश कर भूमिगत जल भण्डार को प्रदूषित न कर दें। इसलिए फिल्टर का प्रयोग आवश्यक है। यदि एक बार भूमिगत जल भण्डार प्रदूषित हो गया तो उसे कभी भी साफ नहीं किया जा सकता।
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि हमारे छत्तीसगढ़ अंचल के अनेक हिस्सों में लगभग 100 से 125 फीट की गहराई पर जिप्सम नामक खनिज की पतली परत पायी जाती है, इस खनिज पर दाब आरोपित होने पर यह स्वतः पानी में घुलने लगता है। ग्रीष्म काल में पानी का स्तर नीचे जाने पर जब हम हैण्डपंप अथवा बोरवेल की सहायता से भूमिगत जल को नीचे से उपर खींचते हैं तो यह जिप्सम अर्थात कैल्सियम, सल्फेट उस पानी में घुला हुआ होता है। हमारा पाचन तंत्र पानी में उपस्थित सल्फेट कठोरता को आसानी से नहीं पचा पाता और यही कारण है कि हमारे छत्तीसगढ़ अंचल में ग्रीष्म काल में पीलिया तथा हेपेटाइटिस जैसी बिमारियां ज्यादा देखने में आती हैं। हमें सदैव भूमिगत जलस्तर में वृद्धि करने का प्रयास करना चाहिए।