विश्व किडनी दिवस पर हाइटेक सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल में परिचर्चा का आयोजन
भिलाई। भारत में क्रॉनिक किडनी डिजीज के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इनमें से अधिकांश का समुचित इलाज नहीं हो पाता। एक अन्य विकल्प है किडनी ट्रांसप्लांट या प्रत्यारोपण। जागरूकता के अभाव में भारत में गुर्दा प्रत्यारोपण विकसित सहित कुछ अन्य देशों के मुकाबले काफी कम होता है। इस दिशा में जागरूकता लाकर हम किडनी के रोगियों को बेहतर जीवन दे सकते हैं। उक्त बातें नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ प्रेमराज देबता ने हाइटेक सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल में विश्व किडनी दिवस पर आयोजित परिचर्चा में कहीं।डॉ देबता ने कहा कि किडनी की तुलना हम भगवान शिव से कर सकते हैं। जिस तरह शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था ठीक उसी तरह हमारी किडनी शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त रखने का काम करती है। किडनी शरीर में तरल का संतुलन बनाए रखने तथा रक्तचाप को नियंत्रित करने का भी काम करती हैं। उन्होंने किडनी रोगों को प्रारंभिक अवस्था में पकड़ने के टिप्स भी दिए।
डॉ देबता ने बताया कि भारत में प्रति वर्ष लाखों की संख्या में किडनी के नए मरीज सामने आते हैं। इनमें से अधिकांश मधुमेह के रोगी होते हैं। इसलिए रक्तचाप और ब्लड शुगर पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए। युवाओं में उच्च रक्तचाप यदि आसानी से नियंत्रित नहीं होता तो उसे तत्काल नेफ्रोलॉजिस्ट से सम्पर्क करना चाहिए।
किडनी ट्रांसप्लांट की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में किडनी डोनेशन को लेकर स्थिति ज्यादा अनुकूल नहीं है। जागरूकता के अभाव में ब्रेन डेड पेशेन्ट्स की किडनी बेकार चली जाती है। उन्होंने बताया कि युवा कैडेवेरिक डोनर की किडनी बुजुर्ग लाइव डोनर्स से बेहतर नतीजे दे सकती है क्योंकि वह बेहतर स्थिति में होती है।
परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए डायटीशियन प्रथा भट्ट ने किडनी मरीजों के आहार पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि बीमार किडनी को अत्यधिक दबाव से बचाने के लिए हमें आहार में संतुलन का ध्यान रखना होगा। किडनी रोगी के लिए अधिक पानी, अधिक नमक और अधिक प्रोटीन घातक होता है। इसलिए ऐसे लोगों को किसी डायटिशियन की सलाह से आहार तालिका बनाकर उसका सख्ती से पालन करना चाहिए।
इस अवसर पर किडनी के रोगियों के अलावा अस्पताल प्रबंधन के सदस्य एवं चुनिंदा नर्सिंग स्टाफ भी उपस्थित था। इन्होंने प्रश्न पूछकर अपनी शंकाओं का समाधान किया।