भिलाई। शौच आदि से निवृत्त होने को भारत में नित्यकर्म की संज्ञा दी गई है। मतलब दिन में कम से कम एक बार शौच तो जाना ही चाहिए। पर चिकित्सकों का मानना है कि दिन में तीन बार से लेकर सप्ताह में 3 बार शौच जाना भी स्वाभाविक हो सकता है। शर्त केवल यह है कि मल की रंगत या उसके टेक्सचर में कोई बदलाव नहीं आना चाहिए। इस दिशा में किए गए शोध से कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। वैसे छत्तीसगढ़ में दिन में दो बार शौच जाने की परम्परा है। 2010 में किये गये एक शोध के मुताबिक 98 फीसदी लोग दिन में तीन बार से लेकर सप्ताह में तीन बार शौच करते हैं। यह शोध स्कैन्डिनेवियन जर्नल ऑफ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी में प्रकाशित हुआ था। स्वास्थ्य पत्रिका हेल्थलाइन द्वारा 2000 लोगों पर एक अध्ययन किया गया। शोध के मुताबिक 50 फीसद लोग प्रतिदिन एक बार शौच के लिए जाते हैं। 28 फीसद लोग दिन में दो बार मलत्याग करते हैं। वहीं 5.65 फीसद लोग ऐसे भी हैं जो सप्ताह में केवल तीन बार मलत्याग करते हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि व्यक्ति कितनी बार और कब-कब शौच जाता है। महत्वपूर्ण यह है कि मल की रंगत एवं उसकी बनावट कैसी है। यदि वह शुष्क हो गया है, गोली गोली निकल रहा है तो यह कोष्ठबद्धता (कांस्टिपेशन) का सूचक है। यदि मल का रंग काला, लाल या हरा हो तो चिंता की बात है। इसी तरह मल यदि पतला हो या पानी जैसा हो तो चिंता का विषय है। अधिकांश लोगों का मलत्याग का एक रूटीन होता है। कुछ लोग रोज सुबह एक बार जाते हैं तो कुछ लोग रोज सुबह-शाम दो बार जाते हैं। कुछ लोग एक-दो दिन की आड़ में जाते हैं। व्यक्तविशेष के लिये यही उनका नार्मल है।