भिलाई। समय से काफी पहले जन्म लेने वाले कम वजन के बच्चों की रेटिना अविकसित हो सकती है। इसे रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्युरिटी (आरओपी) कहते हैं। इसके अलावा शिशु भैंगापन का शिकार हो सकता है या दृष्टिबाधित भी हो सकता है। इसका तत्काल पता लगाया जाना जरूरी होता है ताकि समय पर हस्तक्षेप कर इसे ठीक किया जा सके। अब यह सुविधा हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में उपलब्ध हो गई है। उक्त जानकारी देते हुए हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल की नेत्र रोग विशेषज्ञ रेटिना सर्जन डॉ छाया भारती ने कहा कि हर साल दर्जनों प्री-मैच्योर बेबी इन समस्याओं के साथ जन्म लेते हैं। उन्होंने कहा कि आम तौर पर बच्चे की आंखें सामान्य ही लगती हैं पर गौर करने पर इसका पता लगाया जा सकता है कि रोशनी में बदलाव या सामने की वस्तुओं के इधर-उधर होने पर बच्चे की दृष्टि इसका अनुसरण कर रही है या नहीं। जरा भी संदेह होने पर तत्काल नेत्र रोग विशेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिए।
डॉ छाया ने बताया कि आम तौर पर 32वें सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले ऐसे बच्चे जिनका वजन 2 किलोग्राम से कम हो, उनमें इसका खतरा अधिक होता है। विकार होने पर लेजर थेरेपी के साथ ही इंजेक्शन्स की मदद ली जा सकती है। यदि समय पर इसका इलाज नहीं किया गया तो बच्चा अंधत्व का शिकार हो सकता है।
वयस्कों में रेटिना संबंधी विकार किसी अन्य बीमारी के चलते उभरते हैं। मधुमेह, उच्च रक्तचाप, तनाव, तेज रोशनी, मोबाइल या टीवी स्क्रीन को टकटकी लगाकर देखना, अधिक उम्र, एचआईवी, सिकल सेल, भारी वजन उठाना, जैसे अनेक कारणों से रेटिनोपैथी हो सकती है। इसके अलावा चोट लगने पर भी रेटिना को नुकसान हो सकता है। कारखानों में, विशेषकर जहां धातु कण हवा में उड़ते रहते हैं, आंखों की विशेष सुरक्षा की जानी चाहिए।
रेटिनोपैथी के लक्षण : धुंधला दिखाई देना, फोकस का हिलना, तैरते हुए धब्बों का दिखना, रोशनी चमकने जैसा आभास होना, बारीक चीजों को देखने में परेशानी।
रेटिनल डिटैचमेन्ट : रेटिनोपैथी की समस्या तब गंभीर हो जाती है जब रेटिना अपने स्थान से उखड़ जाती है। यह एक मेडिकल इमरजेंसी होती है जिसमें तत्काल सर्जरी की जरूरत होती है अन्यथा आंखों की रोशनी जा सकती है।