भिलाई। अपने और अपनों के लिए तो सभी जीते हैं पर जो असहाय लोगों के लिए जीते हैं, उनकी जिन्दगी कदरन सब से बड़ी, सबसे कीमती होती है। शांता नन्दी भी एक ऐसी ही शख्स थी जिसने जिन्दगी में एक के बाद एक झंझावातों का सामना बेहद साहस के साथ किया। कभी पति को मौत के मुंह से खींच निकाला तो कभी ऑटिज्म के शिकार बच्चों का ढाल बन गई। कई दिनों तक कोविड से जंग करने के बाद गुरुवार 8 अप्रैल की रात उन्होंने सबको विदा कह दिया।