नई दिल्ली। कोरोना का वायरस छलिये का किरदार अख्तियार कर चुका है। वायरस आरटी-पीसीआर जांच को चकमा दे रहा है। कई मरीजों की आरटी-पीसीआर जांच निगेटिव मिली, लेकिन ब्रांकोस्कोपी से पता चला कि वायरस फेफड़े में छिपा हुआ है। इसलिए अब कोरोना को तत्काल पकड़ने सीधे एचआरसीटी और सामान्य लैब टेस्ट का सहारा लिया जा रहा है। आईएल-6 टेस्ट को इसमें बेहद कारगर पाया गया है।कोरोना मामलों में पहले जहां पांच से सात दिनों में निमोनिया हो रहा था, वहीं अब एक से तीन दिन में फेफड़ों में धब्बा बन जाता है। इसलिए अब इन्फ्लामेट्री मार्करों की जांच की जा रही है। इंटरल्यूकिन आइएल-6 टेस्ट एक प्रोटीन टेस्ट है जिसका संबंध शरीर के अंदरूनी भागों में सूजन से है। कोरोना के गंभीर मरीजों में इसकी मात्रा काफी बढ़ जाती है और मरीज की स्थित गंभीर होने लगती है।
लंदन के फ्रांसिस क्रीक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने रक्त में मौजूद ऐसे 27 प्रोटीन का पता लगाया है जिसके स्तर को जानकर बताया जा सकता है कोविड-19 के मरीज की स्थिति सुधरेगी या और बिगड़ेगी। मरीजों में कोरोना का असर कितना है, इसका पता लगाने के लिए स्पेक्ट्रोमीटर की मदद ली जा सकती है। बेहद कम कीमत में ऐसा किया जा सकता है। ऐसे इक्विपमेंट अस्पतालों में उपलब्ध भी हैं। रिपोर्ट की मदद से रक्त में प्रोटीन के पैटर्न को समझा जा सकता है।
बर्लिन के चैरिटी हॉस्पिटल में कोविड-19 के 48 मरीजों पर यह प्रयोग किया। यह पता चला कि इंटरल्यूकिन आईएल-6 प्रोटीन का कनेक्शन शरीर में अंदरूनी सूजन से है। कोरोना के गंभीर मरीजों में यह प्रोटीन बढ़ जाता है। प्रोटीन बायोमार्कर डॉक्टरों को ये बताने में मदद करेंगे मरीज को किस हद तक इलाज की जरूरत है।
चिकित्सकों के मुताबिक कोरोना में म्यूटेशन की वजह से आरटी-पीसीआर जांच कई बार वायरस को पकड़ नहीं पाती है। मरीजों में छाती में दर्द, बुखार, सांस फूलने, खांसी समेत सभी लक्षण उभरते हैं, किंतु जांच रिपोर्ट निगेटिव आ रही है, लेकिन जब इन्हीं मरीजों की छाती का एक्स-रे व सीटी स्कैन जांच कराई जा रही है तो फेफड़ों में रुई के साइज के धब्बे मिल रहे हैं। सांस फूलने वाले मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव आने पर डाक्टरों ने ब्रांकोस्कोपी की मदद लेनी शुरू कर दी है, जिसमें कई पाजिटिव मिल रहे हैं। डाक्टरों ने बताया कि वायरस अब गला व नाक को छोड़कर फेफड़ों में कालोनी बना रहा है, जो बेहद खतरनाक संकेत हैं।
रिपोर्ट निगेटिव तो ये जांचें देती हैं जानकारी
एचआरसीटी : फेफड़ों में धब्बा का पता लग जाता है
डी-डाइमर टेस्ट : इससे खून में थक्का बनने का पता चलता है। कोरोना मरीजों को एंटी क्लाटिंग दवाएं दी जाती हैं, लेकिन खून लेने के एक घंटे के अंदर लैब में सैंपल सेंट्रीफ्यूज करना होगा। हालांकि लीवर की बीमारी, रूमेटाइड आर्थराइटिस, ट्रामा, हाल में लगी चोट में भी डी-डाइमर टेस्ट ज्यादा आ सकता है।
आइएल-6 : इसे इंटरल्यूकिन-6 भी कहते हैं। यह प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करता है। कोविड मरीजों की प्रतिरक्षा प्रणाली अनियंत्रित होने से शरीर में साइटोकाइन स्टार्म बनने से फेफड़ों के टिश्यू डैमेज हो जाते हैं। इससे शरीर में इंफेक्शन का पता भी चलता है
सीआरपी: सी रिएक्टिव प्रोटीन जांच। यह भी इन्फलामेटरी मार्कर है। ये शरीर के अंदर गंभीर लड़ाई का संकेतक है, जिसमें अंगों की हानि हो सकती है। अगर यह 26 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा है तो कोविड हो सकता है। यदि 100 से ज्यादा है तो एंटी-इन्फ्लामेटरी दवा लेने की सलाह दी जाती है।
सीरम फेरिटिन : शरीर में आयरन की मात्रा की जांच की जाती है, जो संक्रमण के दौरान खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है।
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