भिलाई। डीएवी पब्लिक स्कूल हुडको के प्राचार्य प्रशांत कुमार ने कहा कि विकास और प्रकृति सहगामी नहीं हो सकते। जब हम विकास की बात करते हैं तो कहीं न कहीं हम प्रकृति से छेड़-छाड़ कर रहे होते हैं। पर यदि हम विकास के कारण प्रकृति को हुई क्षति की भरपाई कर लेते हैं तो विकास और प्रकृति संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं। राजस्थान के मरूस्थल इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं।प्राचार्य प्रशांत कुमार शाला के प्रेक्षागृह में भारत सरकार के विज्ञान प्रसार, साइंस सेन्टर ग्वालियर एवं डीएवी पब्लिक स्कूल हुडको के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित प्रकृति अध्ययन गतिविधियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजस्थान में किये गए प्रयोग के सुखद परिणाम आये हैं। इसे और आगे तक ले जाने की जरूरत है। यह अच्छी बात है कि हम विज्ञान प्रसार की बातें कर रहे हैं। हमें इसे दूरस्थ अंचलों में लेकर जाना होगा। इससे लोगों में प्रकृति के प्रति बेहतर समझ विकसित होगी। विशेषकर आदिवासी इलाकों में जहां लोग प्रकृति से बेहद करीबी रूप से जुड़े हुए हैं। विज्ञान का वहां प्रसार होगा तो न केवल उनका व्यापार चलेगा बल्कि उन्हें भी एक मकसद मिल जाएगा।
उन्होंने कहा कि विज्ञान हमारे सामने रहस्य की परतों को खोलता है। ज्ञान हमें आत्मविश्वास देता है। इसके बाद हमें किसी भी तंत्र-मंत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी। हम चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देख पाएंगे। उन्होंने सभी उपस्थितजनों से विज्ञान के प्रचार प्रसार में अपना योगदान देने की अपील की।
डीएवी संस्थाओं के सहायक क्षेत्रीय अधिकारी प्रशांत कुमार ने कहा, “छत्तीसगढ़ में डीएवी पब्लिक स्कूल की 93 शाखाएं हैं तथा 3 तकनीकी महाविद्यालय हैं। लगभग 60 हजार बच्चे और 3000 से अधिक शिक्षक-शिक्षिकाएं जुड़ी हुई हैं। विज्ञान के प्रसार के लिए यह एक विशाल सेना का काम कर सकती है। जहां भी, जब भी, जैसे भी इनकी जरूरत पड़ेगी, हम साथ देने के लिए तैयार हैं।“
7 से 10 मार्च तक आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र को दाऊ वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर नारायण पुरुषोत्तम दक्षिणकर, छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के पूर्व महानिदेशक डॉ एम एल नायक, भारत सरकार के विज्ञान प्रसार (नई दिल्ली) के निदेशक डॉ बी के त्यागी, साइंस सैंटर की सचिव संध्या वर्मा, संयोजक डॉ डी एन शर्मा ने भी संबोधित किया। चार दिवसीय कार्यशाला में कवर्धा, राजनादगांव , बालोद, बेमेतरा एवं दुर्ग जिले के 55 शिक्षक भाग ले रहे हैं जो इसे आगे अपने विद्यार्थियों तक पहुंचाएंगे।