भिलाई। मानसिक व्याधि की न केवल पहचान मुश्किल है बल्कि इसका इलाज भी लंबा खिंचता है। रोगी की अवस्था गंभीर होने पर उसे अस्पताल में रखकर इलाज करने की जरूरत होती है पर घर पर रखकर उनका इलाज करना ज्यादा अच्छे परिणाम देता है। उक्त बातें ओंटारियो कनाडा में मानसिक स्वास्थ्य पर काम कर रहीं सीनू कोशी ने आज एमजे कॉलेज ऑफ नर्सिंग एवं एमजे कालेज द्वारा संयुक्त रूप से विश्व सीजोफ्रेनिया दिवस पर आयोजित वेबीनार में साझा की। वे स्रोत व्यक्ति के रूप में इस वेबीनार को संबोधित कर रही थीं।सीजोफ्रेनिया के विभिन्न रूपों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अज्ञात भय, किसी और के द्वारा संचालित किये जाने का आभास, काल्पनिक आवाजें, व्यक्ति तथा परिस्थितियों की कल्पना करना जैसे इसके अनेक लक्षण हो सकते हैं। इन लक्षणों की पहचान कर रोगी की चिकित्सा की जा सकती है। इसमें दी जाने वाली औषधियों को काम करने के लिए थोड़ा वक्त लगता है। रोगी और उसके परिजन हड़बड़ी में दवा बदल देते हैं या फिर उसे बंद कर देते हैं जिसके कारण मरीज की हालत और खराब हो जाती है। कुछ मरीज खतरनाक भी हो सकते हैं जिनके साथ काम करते समय अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी होता है।
आरंभ में एमजे समूह की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर ने वेबीनार को अपना आशीर्वाद देते हुए उम्मीद जताई कि मानसिक रोगों की पहचान की दिशा में यह वेबीनार एक मील का पत्थर साबित होगा। महाविद्यालय के प्राचार्य डैनियल तमिलसेलवन ने वेबीनार के विषय वस्तु पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मानसिक व्याधियां लगातार नए नए रूपों में उभर कर सामने आ रही हैं। इसकी पहचान, उसके कारण और इसके उपचार के लिए इस वेबीनार का आयोजन किया गया है। उप प्राचार्य सिजी थॉमस ने स्रोत व्यक्ति शीनू कोशी का परिचय दिया।
सहायक प्राध्यापक दीपक रंजन दास ने कहा कि भारत में ऐसे लोगों को सठियाया हुआ मान लिया जाता है। स्थिति गंभीर होने पर ऐसे लोगों को कमरों में बंद रखा जाता है, उनके साथ जोर जबरदस्ती की जाती है। ऐसे रोगियों के साथ मारपीट करना या उन्हें बांध कर रखे जाने की घटनाएं भी सुनने में आती हैं। ऐसे रोगियों को रोगी मानने की दिशा में कुछ जागरूकता आई है और कुछ केन्द्रों पर ऐसे लोगों का इलाज भी हो रहा है। यह वेबीनार इस दिशा में जागरूकता लाने में सफल सिद्ध होगा।
वेबीनार का संचालन सहायक प्राध्यापक ममता सिन्हा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सहायक प्राध्यापक गीता साहू ने किया।