दुर्ग। जल सरंक्षण हम सभी का नैतिक दायित्व है। प्रत्येक नागरिक को जल संरक्षण के प्रति सजग रहकर अपने-अपने स्तर पर सकारात्मक प्रयास करना चाहिये। ये उद्गार छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने आज व्यक्त किये। राज्यपाल हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की ऑनलाईन कार्यशाला को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रही थीं।‘ कार्यशाला में 25 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति, कुलसचिव, दुर्ग संभाग के अपर संचालक उच्च शिक्षा डॉ. सुशील चंद्र तिवारी, कुलसचिव डॉ. सी. एल. देवांगन सहित लगभग 2000 से ज्यादा प्रतिभागी ऑनलाईन उपस्थित थे।जल संरक्षण-कैच द रेन‘विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे दैनिक जीवन के क्रियाकलापों में भी आवश्यकतानुसार ही पानी उपयोग करें। व्यर्थ बहते नल की टोंटी बंदकर, वृक्षारोपण कर, कार की धुलाई में बर्बाद होने वाले जल को रोक कर हम जल संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
राज्यपाल ने सभी उपस्थित कुलपतिगण तथा प्राचार्यों का आव्हान किया कि वे अपने-अपने शैक्षणिक संस्थानों में रेन वाटर हारवेस्टिंग प्रणाली अनिवार्य रूप से स्थापित करें।
इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कुलगीत के प्रस्तुतिकरण के साथ आरंभ हुए जल संरक्षण पर कार्यशाला में संचालक व दुर्ग विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने जल संरक्षण तथा कैच द रेन की विषय वस्तु पर प्रकाश डाला। दुर्ग विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरूणा पल्टा ने अपने स्वागत भाषण में जल संरक्षण की महत्ता पर विचार विमर्श करने हेतु राजभवन के निर्देश की सराहना करते हुए कहा कि इसका श्रेय राज्यपाल को दिया।
डॉ पल्टा ने कहा कि विश्वविद्यालय के 6 वर्षों के इतिहास में प्रथम बार किसी कार्यक्रम में राज्यपाल के साथ-साथ सचिव उच्च शिक्षा तथा 25 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति शामिल हुए हैं। उच्च शिक्षा विभाग के सचिव धनंजय देवांगन ने अपने उद्बोधन में जलसंरक्षण संबंधी जागरूकता फैलाने हेतु उच्च शिक्षा संस्थानों को सबसे उत्तम माध्यम बताया। छत्तीसगढ़ प्रदेश के लगभग साढ़े सात लाख उच्च शिक्षा में अध्ययनरत् विद्यार्थियों को ऐसी कार्यशालाओं के द्वारा जागरूक किया जा सकता है।
कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित राजस्थान के प्रसिद्ध पर्यावरण एवं जल संरक्षण विद् तथा मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह ने जल संरक्षण को हमारे वर्तमान समय की नितांत आवश्यकता बताते हुए कहा कि उन्होंने थार मरूस्थल के नजदीक मात्र एक गांव में जल संरक्षण हेतु संरचना तैयार की थी। धीरे-धीरे इसका प्रसार होते होते यह अवधारणा राजस्थान के 8600 गांवों में विस्तारित हो गई। इससे गांवों में तो भूजल स्तर में वृद्धि हुई ही साथ ही साथ पांच नदियों के जल स्तर में भी वृद्धि हुई। राजेन्द्र सिंह ने बताया कि छोटे-छोटे चेकडेम, नालियां, रेन वाटर हारवेस्टिंग प्रणाली स्थापित कर जल को संरक्षित किया जा सकता है। जहां तक छत्तीसगढ़ अंचल की बात है तो यहां धान के खेत रेन वॉटर हारवेस्टिंग के सबसे बड़े स्त्रोत है। हमें भूमिगत जलभंडार को कभी भी प्रदूषित नहीं करना चाहिये। हमें जल संरक्षण कार्यक्रमों के साथ-साथ अंदर से जागृत होने की आवश्यकता है। हमारे देश में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग अच्छा काम की प्रशंसा करते है परंतु वे स्वयं अच्छे कार्य हेतु आगे नहीं आते। डॉ सिंह ने विश्वविद्यालयों में जल संसाधन पाठ्यक्रम आरंभ किये जाने पर बल दिया। इस पर राज्यपाल ने भी अपनी सहमति दी। उन्होंने कहा कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ प्रकृति का लाड़ला प्रदेश है जहाँ 1200 मिमी वर्षा वार्षिक होती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्टॉकहोम पुरस्कार से 2015 में सम्मानित थी।
धन्यवाद ज्ञापन हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग के एनएसएस समन्वयक डॉ आर.पी. अग्रवाल ने किया। कार्यशाला में छत्तीसगढ़ के 25 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति, कुलसचिव, दुर्ग संभाग के अपर संचालक उच्च शिक्षा डॉ. सुशील चंद्र तिवारी, कुलसचिव डॉ. सी. एल. देवांगन सहित लगभग 2000 से ज्यादा प्रतिभागी ऑनलाईन उपस्थित थे।