भिलाई। एक अच्छे शिक्षक के लिए जरूरी है अपनी संप्रेषण कला को विकसित करना। विषय की तैयारी अच्छी है पर वह बोधगम्य भाषा में विद्यार्थी तक नहीं पहुंच पा रहा है तो शिक्षण का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।
एमजे कॉलेज के एलुमनाई एसोसिएशन द्वारा आयोजित एलुमनाई व्याख्यान माला के तीसरे दिन पूर्व छात्रा आराधना तिवारी ने उक्त बातें कहीं। महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से आयोजित इस शृंखला में प्रतिदिन पूर्व विद्यार्थी व्याख्यान दे रहे हैं।आराधाना तिवारी ने बताया कि वैसे तो संप्रेषण या कम्युनिकेशन की जरूरत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है पर शिक्षण में इसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। सबसे पहले आता है विषय या संप्रेषण की सामग्री। इसकी तैयारी अच्छी होनी चाहिए। इस तैयारी को हम एनकोडिंग कह सकते हैं। संप्रेषण के लिए माध्यम का होना भी जरूरी है। साधारणतया क्लासरूम में शिक्षक और शिक्षार्थी आमने सामने होते हैं पर कोविड कालखण्ड में ऑनलाइन माध्यमों का उपयोग किया जा रहा है। यहां श्रोता को स्वयं से जोड़े रखना एक चुनौती होती है। इसकी भी तैयारी करनी चाहिए। रोचक उदाहरणों एवं छोटे-छोटे सवालों से इसे संभव बनाया जा सकता है। श्रोता द्वारा संदेश को प्राप्त करने के बाद उसे समझना जरूरी होता है। इसे हम डीकोडिंग कहते हैं। शिक्षार्थी की प्रतिक्रिया ही फीडबैक है।
आराधना सम्प्रति एमजे कालेज के शिक्षा संकाय में सहायक प्राध्यापक हैं। उन्होंने सम्प्रेषण की बाधाओं की विस्तार से चर्चा करते हुए उनसे निपटने के तरीकों को भी बताया।
अभ्यर्थियों ने इस अवसर पर संप्रेषण की बाधाएं, बच्चों की तैयारी, कालखण्डों का निर्णय संबंधी कुछ सवाल भी पूछे जिनका जवाब शिक्षा संकाय की प्रभारी डॉ श्वेता भाटिया एवं आराधना तिवारी ने दिया। उन्होंने शिक्षण से जुड़े कई सुझाव भी अभ्यर्थियों को प्रदान किए।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे के मार्गदर्शन में आयोजित इस ऑनलाइन कार्यक्रम में शिक्षा संकाय की प्रभारी डॉ श्वेता भाटिया, आईक्यूएसी प्रभारी अर्चना त्रिपाठी, एलुमनाई व्याख्यानमाला का संचालन एलुमनाई एसोसिएशन की संयोजक एवं शिक्षा संकाय की सहायक प्राध्यापक मंजू साहू ने किया। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में 60 से अधिक लाभार्थी जुड़े रहे।