• Fri. Mar 29th, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

सीमेंट कंक्रीट से बेहतर होती है हड्डी की बनावट : डॉ सक्सेना

Jun 6, 2021
Series of Health Lectures start at Hemchand Yadav University

दुर्ग। अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ पूर्णेन्दु सक्सेना ने आज हड्डियों की संरचना को सीमेंट कंक्रीट से बेहतर बताया। उन्होंने कहा कि हड्डियां न केवल स्वयं को जरूरत के हिसाब से ढाल सकती हैं बल्कि अपनी मरम्मत भी स्वयं करती हैं। डॉ सक्सेना हेमचंद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्वास्थ्य परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे। सात दिवसीय इस परिचर्चा का आज पहला दिन था। उन्होंने कसरत, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी के बारे में भी विस्तार से चर्चा की।स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के मुख्य आतिथ्य में कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। श्री सिंहदेव ने विश्वविद्यालय की इस पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि स्वास्थ्य जागरूकता की दिशा में यह आयोजन बेहद महत्वपूर्ण एवं उपयोगी साबित होगा। उन्होंने कहा कि जिन सात विशेषज्ञों को इस परिचर्चा में शामिल किया गया है उनमें से तीन की सेवाएं वे स्वयं ले चुके हैं। उन्होंने कार्यक्रम की सफलता की शुभकामनाएं दीं।
डॉ सक्सेना ने कहा कि विषय को बोन हेल्थ रखकर कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने अपनी चिंतनशीलता का परिचय दिया है। ऑर्थोपेडिक्स का शाब्दिक अर्थ बेहद संकुचित है। अब तो मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम की बात होनी चाहिए। विषय को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि अच्छे बोन हेल्थ में बचपन के खानपान एवं जीवन शैली की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसलिए 20-22 साल की उम्र तक हड्डियों की सेहत एवं पोषण का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
उम्र के साथ हड्डियों में आने वाले विकारों की चर्चा करते हुए उन्होंने ऑस्टियोपोरोसिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस और रूमैटिज्म की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि निष्क्रिय जीवनशैली, गलत खान पान, नशे की लत भी हड्डियों को खोखला कर सकती हैं।
बड़ों में विटामिन डी की कमी के बढ़ते मामलों की चर्चा करते हुए उन्होंने गलत लाइफ स्टाइल तथा बढ़ते प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि विटामिन डी की कमी से और भी स्वास्थ्य गत परेशानियां जकड़ सकती हैं।
फीमर नेक (जांघ की हड्डी का ऊपरी सिरा) में फ्रैक्चर की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सर्जरी से ही इसे ठीक किया जा सकता है। सर्जरी नहीं कराने पर 40 फीसद ऐसे मरीजों में जान का जोखिम रहता है जिसे सर्जरी द्वारा कम किया जा सकता है। हालांकि इसकी वजह अन्य स्वास्थ्यगत परेशानियों का मिलाजुला रूप होती हैं।
टोटल नी रिप्लेसमेंट सर्जरी को खराब घुटनों का अंतिम विकल्प बताते हुए उन्होंने कहा कि इसमें सफलता का प्रतिशत बहुत अच्छा है। रोगी दूसरे ही दिन चल फिर सकता है। कुछ ही समय में वह सीढ़ियां भी चढ़ने लगता है। रीढ़ के विकारों और चोट के बारे में भी उन्होंने विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि नी रिप्लेसमेंट सर्जरी 65 से 75 की उम्र के बीच करना अच्छा रहता है। इससे यह जोड़ व्यक्ति का अंत तक साथ देता है। उन्होंने जोड़ों और उनके काम करने के तरीकों के बारे में भी विस्तार से बताया।
डॉ सक्सेना ने बताया कि आम तौर पर हम अच्छा दिखने के लिए जरूरत से ज्यादा जिम करने लगते हैं। इसके लाभ कम और नुकसान ज्यादा हैं। बड़ी मांसपेशियों के नीचे काम करने वाली छोटी मांसपेशियां गुम हो जाती हैं और कामकाज में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। कसरत चाहे कोई भी, उसकी अति नहीं होनी चाहिए। हमें सुन्दर दिखने के लिए नहीं बल्कि स्वस्थ्य और सबल रहने के लिए कसरत करनी चाहिए।
लंबे समय तक बैठकर काम करने वालों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि अधिकांश फर्नीचर साढ़े पांच फीट के लोगों के लिए बने होते हैं। इसलिए लंबे लोगों को और नाटे लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने उठने बैठने, वजन उठाने आदि के सही तरीकों की भी जानकारी पावर पाइंट प्रजेन्टेशन के माध्यम से दी।
सिकल सेल एनीमिया वाले बच्चों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसका पता जितनी जल्दी लगा लिया जाए उतना अच्छा रहता है। ऐसे बच्चों को उनकी विशेष जरूरतों के हिसाब से देखरेख की जरूरत होती है।
कुलपति डॉ अरुणा पल्टा के एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि दर्द के लिए नेसल स्प्रे के मुकाबले इंजेक्शन के बेहतर परिणाम आते हैं। डॉ पल्टा के ही एक अन्य सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि यदि बच्चा दूध या दुग्धोत्पाद लेने में आनाकानी करता है तो उसे कैल्शियम सप्लिमेंट दिया जा सकता है।
एक अन्य प्रतिभागी के सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि बड़ों में विटामिन डी की कमी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। खानपान के साथ ही इसका एक बड़ा कारण वायुमण्डल का प्रदूषण है जिसके कारण पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती। विटामिन डी की कमी से न केवल हड्डियां बल्कि शरीर के अनेक अंगों को नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेदिक लेप से भी हड्डियां जल्दी जुड़ती हैं पर इसमें हड्डियों के गलत जुड़ने और टेढ़ा जुड़ जाने का खतरा बढ़ जाता है। चलना फिरना तक मुश्किल हो जाता है।
आरंभ में अतिथि परिचय कुलसचिव डॉ सुमीत अग्रवाल ने दिया। विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में प्रतिभागियों के जुड़ने के कारण उन्हें जूम के साथ साथ यूट्यूब पर डाइवर्ट करना पड़ा। बड़ी संख्या में लोगों ने सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासा का समाधान किया।

Leave a Reply