भिलाई। जूनोटिक बीमारियां समय समय पर पूरी दुनिया में तबाही मचाती रही हैं। जूनोटिक उन बीमारियां को कहते हैं जो कशेरुकी प्राणियों से इंसानों में फैलते हैं। अब तक लगभग 200 जूनोटिक बीमारियों की पहचान की जा चुकी है। कोविड भी एक जूनोटिक बीमारी है। उक्त जानकारी आज वर्ल्ड जूनोटिक डिसीज डे पर हाइटेक के चेस्ट फिजिशियन डॉ प्रतीक कौशिक एवं इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट डॉ आकाश बख्शी ने दी।डॉ प्रतीक कौशिक ने बताया कि मनुष्य का मनुष्येत्तर प्राणियों से कई प्रकार का सम्पर्क होता है। दुधारू पशु, पालती पशु, पोल्ट्री बर्ड के अलावा शोध के लिए भी कुछ जीव जंतुओँ का प्रयोग किया जाता है। पर कभी कभी हमारे ये मित्र पशु कुछ ऐसी बीमारियों के वाहक बन जाते हैं जो त्राहि-त्राहि मचा देते हैं। ये रोग वायरस, बैक्टीरिया, पैरासाइट या फंगस के रूप में उनसे इंसानों तक पहुंच जाते हैं। इनमें सार्स, मर्स (कोविड), बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, एंथ्रैक्स, बोवाइन टीबी, ब्रूसिलोसिस, कैम्पिलोबैक्टर संक्रमण, डेंगू, ईबोला, एंसिफेलाइटिस, हेपेटाइटिस ई, मलेरिया, प्लेग, रेबीज, गोल कृमि, फीता कृमि, सालमोनेला, ई-कोलाई, डिप्थीरिया, जैसी 200 से अधिक बीमारियां शामिल हैं।
डॉ आकाश बख्शी ने बताया कि स्वाइन फ्लू और बर्ड फ्लू को रोकने के लिए हमने बड़े पैमाने पर पशु पक्षियों का संहार किया। पर सभी बीमारियों की रोकथाम इस तरह से नहीं की जा सकती। इसके लिए कुछ और उपाय करने पड़ते हैं। कुछ जूनोटिक बीमारियों के लिए वैक्सीन उपलब्ध हैं। अन्य बीमारियों से बचने के लिए स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना जरूरी है। भोजन को ठीक से पकाना, हाथों को अच्छे से साफ करना, मच्छरों, खटमल आदि से बचाव, पानी को खूब उबाल कर पीना जैसे उपाय किये जा सकते हैं।
डॉ कौशिक ने बताया कि जूनोटिक रोग पशुओं से सीधे सम्पर्क, परोक्ष सम्पर्क, वेक्टर बोर्न (मच्छर, खटमल के दंश), मांसाहार तथा दूषित जल से हो सकता है। 5 साल से कम तथा 65 साल से अधिक के लोगों को खतरा ज्यादा होता है। जूनोटिक बीमारियों के कारण कई बार वैश्विक महामारियां फैल चुकी हैं जिनमें लाखों लोगों की जान चली गई है। इनमें से कुछ बीमारियों का इलाज तो आसानी से हो जाता है पर रोगी की स्थिति गंभीर होने में देर नहीं लगती। इसलिए सावधानी ही एकमात्र बचाव है।