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नए प्रयोगों से तीजन को मिली असाधारण सफलता : डॉ वर्मा

Sep 26, 2021
Innovation spelled success for Teejan Bai

भिलाई। पद्मविभूषण डॉ तीजन बाई आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। बुलन्द आवाज और उत्कृष्ट अभिनय के लिए परिचित डॉ तीजन ने पण्डवानी में नए प्रयोग किये और गली मोहल्ले की इस कला को उठाकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचा दिया। लुप्त होती लोककला पण्डवानी से स्कूली बच्चों का परिचय कराने भारतीय सांस्कृतिक निधि (इंटैक) की विरासत शिक्षा व संचार सेवा के सहयोग से दुर्ग भिलाई अध्याय द्वारा आज यह आयोजन किया गया था।Teejan Bai in interview with Deepak Ranjan Dasभिलाई-दुर्ग और बालोद के 18 स्कूलों के 170 बच्चों को ऑनलाइन संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं लोककला मर्मज्ञ डॉ परदेशी राम वर्मा ने उक्त बातें कहीं। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की यह विशेषता है कि देश के कोने कोने में घटी घटनाओं को हमने लोककलाओं के माध्यम से यहां जीवंत रखा है। लोरिक चंदा, भर्थरी एवं पाण्डवों की गाथा पण्डवानी की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इनमें से कोई भी घटना छत्तीसगढ़ की धरती पर नहीं हुई। उन्होंने कहा कि तीजन बाई की असाधारण सफलता के पीछे उनका नवोन्मेष है। कापालिक शैली में पण्डवानी प्रस्तुत करने वाली वे पहली महिला कलाकार हैं। उन्होंने एक एक प्रसंग पर खूब काम किया और उसे नए कलेवर में ढालकर लोगों के सामने रखा।
कार्यशाला के समन्वयक प्रोफेसर दीपक रंजन दास से चर्चा करते हुए डॉ तीजन बाई ने बताया कि उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि पण्डवानी कहना है। उन्होंने कापालिक शैली को अपनाया। इस दुस्साहस के लिए समाज ने उन्हें अलग थलग कर दिया। पर वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रहीं। जब उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया तो उन्हें यह भी नहीं पता था कि यह होता क्या है। फिर संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण, पद्मविभूषण जैसे सम्मान मिलते गए। आज उनकी अवस्था 75 वर्ष की है और वे बच्चों को इस विधा में पारंगत कर रही हैं। उनका अपना नाती इस विधा से जुड़ चुका है और तबले पर संगत करता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को इस विधा का प्रशिक्षण देना उनकी लिए खुशी की बात होगी।
आरम्भ में इन्टैक की विरासत शिक्षा व संचार सेवा नई दिल्ली की प्रमुख निदेशक पूर्णिमा दत्त ने संस्था द्वारा सांस्कृतिक विरासत व धरोहरों के संरक्षण के लिए किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने बच्चों को कला एवं सांकृतिक विरासत से परिचित कराने व जागरूक करने पर बल दियाI
इन्टैक दुर्ग भिलाई अध्याय के संयोजक डॉ डी एन शर्मा ने स्वागत भाषण में बताया कि दुर्ग व बालोद जिले के 18 स्कूलों के 170 विद्यार्थी व शिक्षक इस ऑनलाइन कार्यशाला में शामिल हुए। इनमें डीपीएस-भिलाई, शंकरा सेक्टर 10, श्री शंकराचार्य स्कूल हुडको, डीएव्ही स्कूल हुडको, खालसा स्कूल दुर्ग, गुरुनानक स्कूल, केपीएस स्कूल नेहरूनगर, शारदा विद्यालय, शकुंतला विद्यालय, आर्य स्कूल सेक्टर 6, सरस्वती शिशु मंदिर सेक्टर-4, आत्मानंद स्कूल दीपकनगर, शास स्कूल-हनोदा, मरोदा, तितुरडीह, बडगांव, रसमडा, महात्मा गाँधी स्कूल दुर्ग के शिक्षक एवं विद्यार्थी शामिल हुए।
ड्यूअल ऑनलाइन मोड में आयोजित कार्यशाला में तकनीकी सहयोग एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे ने दिया। स्वयंसिद्धा, शाश्वत संगीत अकादमी एवं कच्चीधूप की निदेशक डॉ सोनाली चक्रवर्ती का भी सराहनीय योगदान रहा। अंत में दुर्ग भिलाई अध्याय की सह संयोजक विद्या गुप्ता ने आभार प्रदर्शन किया।

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