भिलाई। आईसीयू में लगभग प्रत्येक बिस्तर पर जिन्दगी और मौत के बीच जंग चल रही होती है। जो यह जंग जीत जाते हैं, उनकी अकसर चर्चा नहीं होती। कुछ लोग आईसीयू और वेन्टीलेटर को लेकर भ्रम फैलाते हैं जिसका खामियाजा भी अकसर मरीज को ही उठाना पड़ता है। भ्रम के कारण निर्णय लेने में देर होती है और मौका हाथ से निकल जाता है। यह बातें हाईटेक सुपरस्पेशालिटी सेंटर के क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ एवं इंटेंसिविस्ट डॉ सोनल वाजपेयी ने कहीं।डॉ वाजपेयी ने कहा कि चिकित्सा शास्त्र चाहे जितनी उन्नति कर ले, जीवन और मृत्यु उसके हाथ में नहीं होता। गंभीरतम मरीजों को, जिन्हें जान का जोखिम होता है, उन्हें ही सघन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में रखा जाता है। इसलिए यहां मृत्यु का अनुपात अधिक होने की संभावना बनी रहती है। दूसरी तरफ जिनका जीवन बचाने में हम सफल होते हैं, अकसर उनकी कोई चर्चा नहीं करता। आईसीयू को लेकर समाज में अनेक भ्रांतियां हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि लोगों को लगता है कि आईसीयू से कोई लौटता नहीं। वेंटीलेटर लग गया मतलब उलटी गिनती शुरू हो गई है। यह सच नहीं है। रोग का प्रकार और मरीज की स्थिति यह तय करती है कि उसके बचने की कितनी संभावना है। अधिकांश मरीजों को वेंटीलेटर बहुत कम समय के लिए लगता है जिसके बाद वे उससे बाहर आ जाते हैं।
डॉ वाजपेयी ने कहा कि आईसीयू को लेकर निगेटिव सोच के पीछे सबसे बड़ा कारण यहां होने वाला खर्च है। सघन चिकित्सा का मतलब ही होता है कि प्रति रोगी डाक्टर एवं स्टाफ की संख्या यहां काफी अधिक होगी। इस स्थिति के मरीजों को लगने वाली दवाइयां काफी महंगी होती हैं। मरीज की कई पैरामीटर्स पर कंटीन्युअस मॉनिटरिंग की जाती है। इस खर्च को कम करने के लिए रोगी के आईसीयू स्टे को कम से कम करने की कोशिश करते हैं। पर हमेशा यह संभव नहीं होता।
डॉ वाजपेयी आईसीयू से जुड़ी भ्रांतियों पर हाइटेक के फेसबुक लाइव कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आईसीयू और क्रिटिकल केयर से जुड़े अनेक सवालों का जवाब दिया।