• Wed. Dec 11th, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

मर कर अमर हो गई बेवफा बैतल रानी, अब होती है पूजा

Nov 30, 2021
Baital Rani Valley attracts tourists

राजनांदगांव। यह कहानी एक ऐसी रानी की है जिसे एक चरवाहे से प्रेम हो गया था। राजा ने उसे उसके प्रेमी के साथ पकड़ लिया और तलवार से उसके तीन टुकड़े कर दिये। तीन टुकड़ों में विभक्त बैतल रानी की प्रतिमा आज एक अस्थाई मंदिर में स्थापित है। पहाड़ी पर उनकी समाधि है। इसके पास ही उनके प्रेमी की समाधि भी नजर आती है। यह पहाड़ी लंबी सर्पीली सड़कों और मनोरम दृश्य के लिए प्रसिद्ध है। इस अंचल को बैतलरानी घाटी भी कहा जाता है।

Baital Rani Ghati Road

जी हां! हम बात कर रहे हैं छुईखदान के बसन्तपुर इलाके की पहाड़ियों के प्राचीन इतिहास की। यहां खूबसूरत हरे-भरे पर्वतों के बीच सर्पीली सड़कें इन दिनों पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। इस सड़क का लोकार्पण सन 2020 में किया गया। बड़ी संख्या में लोग यहां ड्राइविंग का आनंद लेने के लिए आते हैं। सड़क के दोनों तरफ या तो पहाड़ियां हैं या फिर भयानक घाटियां। यहीं एक स्थान पर सड़क से परे हटकर एक झोंपड़ीनुमा मंदिर है। इसमें रखी है तीन टुकड़ों में विभक्त एक प्रतिमा। टुकड़ों को एक दूसरे पर रखकर उसे चुनरी ओढ़ा दी गई है। आसपास के लोग इसे मां बैतलरानी के रूप में पूजते भी हैं।
कंवदंती के अनुसार लांजी (मध्यप्रदेश) की राजकुमारी बैतल का विवाह धमधा (दुर्ग) के राजा हरिचंद्र के साथ हुआ था। धमधा उन दिनों गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। हरिचंद्र का राजकाज में मन कम ही लगता था। उनकी मित्रता ठाकुरटोला के राजा से थी। वे अकसर ठाकुरटोला चले जाते और वहीं प्राकृतिक दृश्यों में रमे रहते।
इधर बैतल रानी अकेले-अकेले ही घूमती फिरती रही। ऐसे ही एक दिन उसकी मुलाकात एक चरवाहे से हो गई और दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। जल्द ही यह प्रेम में तब्दील हो गया। अपने नीरस जीवन से ऊब चुकी बैतल रानी ने चरवाहे को कहीं भाग चलने के लिए मना लिया। फिर एक दिन दोनों ने योजना बनाई और महल से भागकर बसन्तपुर की पहाड़ियों में जा छिपे। इधर राजा को रानी की बेवफाई की भनक थी। उसने गुप्तचरों से दोनों के प्रेम प्रसंग का पहले ही पता लगा लिया था। जैसे ही वह महल से भागी, हरिचन्द्र कुछ सैनिकों को लेकर बसन्तपुर की पहाड़ियों में जा पहुंचे और दोनों को पकड़ कर मौत के घाट उतार दिया। बैतलरानी के उन्होंने तीन टुकड़े कर दिये।
इस पहाड़ी पर आज भी एक पेड़ के नीचे दो समाधियों जैसे चबूतरे हैं। लोग बताते हैं कि मां बैतल रानी की खंडित मूर्ति भी कभी यहीं पर हुआ करती थी। पहाड़ी पर बहुत कम लोगों का आना जाना होता था। इसलिए मूर्ति को नीचे सड़क किनारे लाया गया। अब यही बैतल रानी का अस्थायी ठिकाना है। सड़कों का काम पूरा हो जाने के बाद यहां मंदिर का निर्माण कराया जाएगा ताकि यह प्राचीन मूर्ति सुरक्षित रह सके।
यह भी कहते हैं लोग – किंवदंतियों के अनुसार उन दिनों कुछ लोगों का खून सफेद होता था। जिनका खून सफेद होता था मरने पर वे पत्थर के बन जाते थे। बैतलरानी का खून भी सफेद था। हालांकि, इसपर यकीन कर पाना कठिन है।
बैतालरानी घाटी कैसे पहुंचें –
– यह स्थान छुईखदान से लगभग 25 किलोमीटर और साल्हेवारा से लगभग 30 किलोमीटर दूर है।
– दुर्ग से जालबांधा-खैरागढ़ मार्ग होते हुए सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। कुल दूरी है 88 किलोमीटर।
– राजनांदगांव से खैरागढ़ मार्ग होते हुए सड़क मार्ग से। कुल दूरी 77 किलोमीटर।

Leave a Reply