दुर्ग। शासकीय डॉ. वा.वा. पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी विभाग के तत्वाधान में साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की जयंती का आयोजन किया गया। “मुक्तिबोध का रचना-संसार” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। एम.ए. प्रथम सेमेस्टर की छात्रा निधि ताम्रकार ने मुक्तिबोध की रचना-शैली पर प्रकाश डाला। एम.ए. तृतीय सेमेस्टर की रानी साहू ने मुक्तिबोध का साहित्यिक-परिचय देते हुए उनकी कविताओं का वाचन किया।संस्था के प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि – मुक्तिबोध नई पीढ़ी के कवि है। आधुनिक परिवेश में जो मनुष्य में छटपटाहट है, वेदना है उसकी छाप उनकी कविताओं में स्पष्ट परिलक्षित होती हैं। मुक्तिबोध अपने विचारों को कविता के माध्यम से व्यक्त करते है। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में मुक्तिबोध के साहित्य पर शोधकार्य किया जा रहा है।
प्रो. विकास पंचाक्षरी ने बातचीत के माध्यम से मुक्तिबोध पर अपने विचार रखते हुए कहा कि –उनकी कवितायें अनुभूति एवं विचारों से प्रभावित होती है। उन्होंने ‘‘सहर्ष स्वीकारा है’’ कविता के माध्यम से अपनी बात प्रस्तुत की और कहा कि मुक्तिबोध महान कवि थे जिन्होने साहित्य में नए युग का सूत्रपात किया।
डॉ योगेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि- मुक्तिबोध की कविता ‘‘अंधेरे में’’ से मैं बहुत प्रभावित हुआ। देश के दो महान चित्रकारों ने उनकी कविता को चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। सुप्रसिद्ध चित्रकार सैय्यद रजा साहब एवं मकबूल फिदा हुसैन उनकी कविताओं से प्रेम करते थे जो उनके चित्रों में परिलक्षित होते है।
डॉ. अल्पना त्रिपाठी ने कहा कि मुक्तिबोध मध्यम वर्गीय चेतना के प्रतिनिधि कवि है और रहेंगे, उन्होनें अपने जीवन के अनुभवों, संघर्षों से जिस सामाजिक यथार्थ को देखा और आजीवन उस यथार्थ को अपनी रचना में रूपान्तरित करते रहे। वह सामाजिक यथार्थ आज भी मौजूद है। ज्योति भरणे ने कहा कि -मुक्तिबोध ने अपनी खुली आँखों से जीवन और जगतको देखा, भोगा और अनुभव किया। उनकी कविताओं में सामाजिक जीवन की विडम्बनाओं के चित्र है। यह सब उनके अनवरत् अध्ययन, चिंतन, अन्वेषण का परिणाम है इस अवसर पर एम.ए. हिन्दी की छात्राएँ आशा निर्मलकर, ऋतु साहू, लक्ष्मी पाटिल, ने भी उनकी कविता का वाचन किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ यशेश्वरी ध्रुव तथा आभार प्रदर्शन ज्योति भरणे ने किया। इस अवसर पर बड़ी संख्याँ में छात्राएँ उपस्थित थी।