धमधा-बौद्ध। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की धमधा तहसील एवं ओडीशा के बौद्ध जिले के बीच एक अजीबोगरीब संबंध है। बात सन 1630 के आसपास है। उन दिनों बौद्ध में सिद्धभन्जदेव का शासन था। वे एक निहायत ही निकम्मे राजा थे। पर उनका किला बेहद मजबूत था। सम्बलपुर के शासक काफी कोशिशों के बाद भी इस किले को भेद नहीं पाए थे। तब धमधा के राजा ने अपनी सेना और कौशल से उनकी मदद की थी।
दरअसल बौद्ध का किला चारों तरफ खाई से घिरा था। खाई के पानी में विशाल मगरमच्छ थे। किला अभेद्य था। बौद्ध नरेश सम्बलपुर राज के विकास से ईर्ष्या करते थे। वे राजा बलभद्र देव को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। जब भी बात युद्ध की आती वो जाकर अपने किले में छिप जाते। अंततः संबलपुर नरेश ने बौद्ध पर चढ़ाई कर दी। पर सेना किले तक पहुंच नहीं पाई और खाई के किनारे शिविर डालकर बैठी रही।
सम्बलपुर नरेश ने इसके बाद सारंगढ़ के शासक भीखराय की मदद मांगी। भीख राय ने धमधा नरेश अपने श्वसुर को समस्या के बारे में बताया। धमधागढ़ भी बौद्ध की तरह ही चारों तरफ गहरी खाई और पानी से सुरक्षित था। उन्हें इसके पार जाने का उपाय मालूम था। उन्होंने उपाय बताया जो सबको स्वीकार हो गया।
धमधा, सारंगढ़ और सम्बलपुर में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे कैदियों को लेकर सेना की एक टुकड़ी बौद्ध पहुंची। इन कैदियों को घायल करके खाई के पानी में फेंक दिया गया। मगरमच्छ इनका भक्षण करने लगे। तब सेना इन मगरमच्छों की पीठ पर पांव रखते हुए खाड़ी के पार किले तक पहुंच गई। बौद्ध के राजा पराजित हुए और सोनपुर भी उनके हाथों से निकल गया। राजा सिद्ध भंज को बन्दी बनाकर भीखराय ने सम्बलपुर राजा के सामने हाज़िर किया। राजा बलभद्र ने भीखराय को सोहागपुर का 12 खंड मौजा उपहार में दे दिया। इस तरह अपनी चतुराई से धमधा नरेश ने बौद्ध के किले को ढहाने में सम्बलपुर राज की सहायता की।
(धमधा गढ़ स्थित महामाया मंदिर समिति के सचिव पप्पू ताम्रकार, ओडीशा के पत्रकार एवं इनटैक सदस्य दीपक पंडा तथा फैमिलीपीडिया फेमडम तथा से प्राप्त इनपुट्स के आधार पर।)
Pic Credit – Deepak Ranjan Das, odishatour.nic.in