रायपुर। बिलासपुर के मदकूद्वीप, दुर्ग के तरीघाट, अंबिकापुर के महेशपुर और बलौदाबाजार के डमरू में मिली प्राचीन विरासत को सहेजने का प्रस्ताव पुरातत्व विभाग ने तैयार कर लिया है। इन प्राचीन स्मारकों पर पर्यटन सुविधाओं को विकसित करने के साथ ही इन्हें टूरिज्म के नक्शे पर भी लाने के लिए विशेष प्रयास किये जाएंगे। राज्य बनने से पहले 58 जगहों को संरक्षित किया गया था पर राज्य बनने के बाद यह सिलसिला टूट गया था।
संस्कृति व पुरातत्व विभाग के निदेशक विवेक आचार्य ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य बनाने के बाद पहली बार चार जगह के स्मारक को संरक्षित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। पहले से संरक्षित 58 स्मारकों में कुलेश्वर मंदिर राजिम, शिव मंदिर चंद्रखुरी, सिद्धेश्वर मंदिर पलारी, चितावरी देवी मंदिर धोबनी, मालवी देवी मंदिर तरपोंगी और प्राचीन मंदिर ईंट नवागांव प्रमुख हैं।
शिवनाथ नदी के बीच में मदकूद्वीप पर गणेश प्रतिमा के साथ 11वीं शताब्दी के शिव मंदिरों के प्राचीन अवशेष मिले हैं। मंदिरों में उमामहेश्वर, गरुड़ारूढ़ लक्ष्मीनारायण स्पार्तलिंग प्रमुख हैं। दुर्ग जिले के पाटन स्थित तरीघाट में पुरातत्व विभाग की खुदाई में खारुन नदी के तटीय इलाके में कई पुराने टीले और प्राचीन नगरों के अवशेष व शिलालेख मिले हैं। बलौदाबाजार से लगभग 14 किमी दूर डमरू गांव में पुरातत्व विभाग की खुदाई में भगवान बुद्ध का पदचिन्ह समेत कई तरह की मूर्तियां मिली है। इसी तरह अंबिकापुर से 45 किमी दूर महेशपुर में मौर्यकालीन नाट्यशाला, अभिलेख मिले थे। यहां प्राचीन टीला, शैव, वैष्णव, जैन धर्म की कलाकृतियां हैं।
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