भिलाई। युवाओं में किडनी फेल होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जिन मरीजों की डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जा रही है उनमें से 40 फीसदी युवा हैं. इनमें से भी अधिकांश मरीज 30 वर्ष या उससे भी कम उम्र के हैं. आरोग्यम सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल के किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ आरके साहू ने बताया कि इसका मुख्य कारण इलाज शुरू करने में हुआ विलम्ब होता है. आरोग्यम में जिन मरीजों का डायलिसिस किया जा रहा है उनमें भी युवाओं का एक बड़ा प्रतिशत है.
किडनी फेलियर के लिए आम तौर पर मधुमेह और रक्तचाप को जिम्मेदार ठहराया जाता है. पर औषधियों के दुष्प्रभाव और संक्रमण की वजह से भी किडनी फेल हो सकते हैं. अन्य कारणों में पॉलीसिस्टिक किडनी सिंड्रोम प्रमुख है. यह आनुवांशिक होता है. पर जिन युवाओं का आरोग्यम में इलाज चल रहा है उनमें से अधिकांश को मधुमेह या रक्तचाप की कोई समस्या नहीं थी. इन युवाओं को आईजीए नेफ्रोपैथी (IgA Nephropathy) थी. आईजीए या इम्यूनोग्लोबिन-ए किडनी में एकत्र होने लगते हैं और उसे नुकसान पहुंचाते हैं. इसकी वजह से ग्लोमेरूल (किडनी के फिल्टर सेल) अपने काम में गड़बड़ी करने लगते हैं और प्रोटीन और रक्त पेशाब के साथ निकलने लगता है.
डॉ साहू ने कहा कि जब किडनी की बीमारी शुरू होती है तो इसके लक्षणों को पहचानना मुश्किल होता है. यही कारण है कि अक्सर इलाज समय पर शुरू नहीं हो पाता. बीमारी के लक्षण भी बहुत साफ नहीं होते. ये लक्षण ब्लड प्रेशर या डायबीटीज के कारण भी हो सकते हैं. इसलिए रक्त और मूत्र की जांच करवाना जरूरी हो जाता है. सही समय पर बीमारी पकड़ने पर डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट जैसी स्थिति से बचा जा सकता है.