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केन्द्रीय एजेंसियों के पास सबूत कम, डंडे का जोर ज्यादा

Nov 29, 2022
ED interrogation is a power game

कहा गया है – “पर पीड़ा सम नहीं अधमाई”. पर जिसके हाथ में अधिकार होता है वह उसका बर्बर प्रयोग करता ही है. अंग्रेज भी करते थे और देसी सरकारें भी करती हैं. छत्तीसगढ़ सरकार के पास एक बार फिर से यह शिकायत पहुंची है कि केन्द्रीय एजेंसियां थर्ड डिग्री का इस्तेमाल कर रही हैं. एक बार फिर मुख्यमंत्री ने चेतावनी दी है कि केन्द्रीय एजेंसियां संविधान के दायरे में रहकर अपना काम करें, इसका स्वागत किया जाएगा. पर एजेंसियां यदि कानून के दायरे से बाहर जाकर काम करती हैं तो राज्य पुलिस को उनसे निपटने के निर्देश दिए जाएंगे. शिकायत मिली है कि ईडी, आईटी और डीआरआई पूछताछ के नाम पर अधिकारियों और कारोबारियों को मुर्गा बनाकर पीट रही है, उन्हें दिन-दिन भर भूखा प्यासा रख रही है. तो क्या केन्द्रीय एजेंसियां हवा में लाठी भांज रही हैं? ऐसी कौन सी पूछताछ करती हैं केन्द्रीय एजेंसियां कि वह सालों-साल खत्म नहीं होती. रिकार्ड इतना खराब है कि अपने गठन के 13 साल बाद अगस्त 2022 तक इसने ताबड़तोड़ पूछताछ के बाद जो 5400 मामले अदालत में पेश किये, उनमें से केवल 23 आरोपियों पर दोष सिद्ध हो पाया. सफलता का यह आंकड़ा 0.5 प्रतिशत के करीब है. इससे अच्छा कन्विक्शन रेट को देहाती पुलिस का है. चार डंडा मारकर जिसे चोर कहकर अदालत में खड़ा करती हैं, उनमें से अधिकांश अपना जुर्म कबूल कर सजा काट लेते हैं. दरअसल, केन्द्रीय एजेंसियां जनभावना के साथ खेल रही हैं. उन्हें अच्छी तरह पता है कि देश में कम्युनिस्ट राज भले ही न हो, पर अधिकांश गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों का मानना है कि अधिकारी, उद्योगपति और कारोबारी चोर होते हैं. वे यह मानकर चलते हैं कि इन लोगों ने उन्हें लूटकर अपनी तिजोरी भरी है. इसलिए जब किसी बड़े पर कार्रवाई होती है तो उन्हें बेहद खुशी मिलती है. वे तालियां बजाते हैं, नाच गाकर खुशियां मनाते हैं. बेचारे नहीं जानते कि टोपी से खरगोश निकालना केवल जादू है, दृष्टिभ्रम है. वास्तव में यदि कोई कागज का नोट बना पाता, टोपी से खरगोश निकाल पाता तो ऋषि मुनियों की तरह हिमालय में चला जाता. गली मोहल्ले में अपनी एड़िया नहीं चटकाता फिरता. इससे पहले भी केन्द्र सरकार दो नम्बर का पैसा खत्म करने के लिए नोटबंदी जैसा पैंतरा अपना चुकी है जबकि विषय विशेषज्ञों का मानना था कि इससे होने वला नुकसान, इसके फायदे से कहीं ज्यादो होगा. पर सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने और काला धन खत्म करने के नाम पर नोटबंदी की. जैसा कि अंदेशा था, सरकार की यह कवायद बेकार साबित हुई. 500 और 1000 के 99.3 फीसदी करेंसी नोट बैंकों में जमा हो गया. दो नंबर का पैसा सोना, जमीन और जायदाद में खप गया. पर सरकार की मंशा पूरी हो गई. जनता ने हंसते-हंसते यह दर्द सहन कर लिया क्योंकि उन्हें लगा कि सरकार ने अमीरों की दुम ठोंक दी है. यह और बात है कि नोटबंदी के बाद से लेकर अब तक नए नोट छापने में भारतीय रिजर्व बैंक ने 1293.6 करोड़ रुपए खर्च कर दिये हैं. अब बजाओ ताली.

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