“वक्फ” का मामला पिछले कुछ महीनों से सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. बताया जा रहा है कि “वक्फ” के पास इतनी शक्तियां हैं कि वो किसी भी जमीन पर दावा कर सकती है. ऐसे मामलों की सुनवाई भी केवल “वक्फ बोर्ड” ही कर सकता है. इन मामलों को अदालतों के क्षेत्राधिकार से बाहर माना गया है. यहां तक बताया जा रहा है कि वक्फ बोर्ड के कोई भी दो सदस्य यदि किसी भूमि पर वक्फ का दावा जता दें तो वह जमीन वक्फ की हो जाएगी. उन्हें इसके लिए किसी तरह का सबूत देने की भी जरूरत नहीं होगी. यह मामला तब उछला जब सितम्बर में तमिलनाडु के तिरुचि जिले के तिरुर्चेंथुरई गांव में 1500 साल से ज्यादा पुराने मानेदियावल्ली चंद्रशेखर स्वामी मंदिर और उसके आसपास के छह गांव की जमीन पर “वक्फ बोर्ड” ने दावा ठोंक दिया. मामला तब सामने आया जब गांव का एक किसान अपनी जमीन गांव के ही एक अन्य किसान को बेचने के लिए रजिस्ट्रार के दफ्तर में पहुंचा. तब उसे बताया गया कि गांव की पूरी जमीन “वक्फ संपत्ति” है. जमीन बेचने के लिए उसे पहले “वक्फ बोर्ड” से अनापत्ति प्रमाण पत्र लाना होगा. मामला उछलने के बाद जिला प्रशासन ने इस पूरे मामले का संज्ञान लेकर आश्वासन दिया कि मामले की जांच होगी. तब तक लोग पहले की ही तरह अपनी जमीनें बेच और खरीद सकते हैं. इसके बाद देश भर से इस तरह की खबरें सामने आती रहीं. हाल ही में छत्तीसगढ़ में भी इस तरह का एक मामला सामने आया. खबर थी कि राज्य वक्फ बोर्ड ने दुर्ग शहर के नयापारा, कायस्थ पारा, प्रेस कांप्लेक्स, तहसील कार्यालय, पंचशील नगर के विभिन्न खसरा नंबर की सैकड़ों एकड़ जमीन पर स्वामित्व का दावा किया है. मामला सामने आते ही हो-हल्ला मच गया. सैकड़ों लोगों ने दुर्ग तहसील कार्यालय में इसके खिलाफ आपत्ति दर्ज करा दी. सुनवाई के बाद तहसीलदार ने मामला खारिज कर दिया. जिला प्रशासन दुर्ग ने बताया कि “वक्फ बोर्ड” ने खसरा नम्बर 21/2, 21/3, 29/2, 146/4, 109 पर दावा किया था. इन खसरा नंबर की जमीनें निजी भूमि स्वामियों के नाम पर दर्ज है. जानकारों की मानें तो धर्मार्थ कार्यों के लिए दान की गई जमीन या संपत्ति ही वक्फ संपत्ति हो सकती है. इसलिए यह जरूरी है कि जमीन मस्जिद, मदरसा, मजार, आदि के नाम पर दान की गई हो. वक्फ की संपत्ति खुदा के नाम पर होती है इसलिए उसे वापस नहीं लिया जा सकता. इस संपत्ति से मिलने वाले राजस्व पर राज्य वक्फ बोर्ड का अधिकार होता है जिसका उपयोग धर्मार्थ कार्यों में किया जा सकता है. वक्फ संपत्ति के मामले में अंतिम फैसला वक्फ न्यायालय का होता है. पर जरूरी है कि संपत्ति पहले वक्फ की साबित तो हो. वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा. इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन का लंबे समय से इस्तेमाल कर रही है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित होता है. तमिलनाडु और दुर्ग के मामलों ने साफ कर दिया है कि वक्फ बोर्ड सर्वशक्तिमान नहीं है. हैदराबाद में सरकार ने वक्फ संपत्ति की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी है. उत्तर प्रदेश सरकार ने भी वक्फ संपत्तियों के मामले में 33 साल पुराना आदेश रद कर दिया है. यहां वक्फ की सभी संपत्तियों की जांच होगी. इस मामले में धुंध जितनी जल्दी छंटे, उतना ही अच्छा. यह देश के सामाजिक सांस्कृतिक ताने-बाने की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है.