भिलाई. देश में मिर्गी के एक करोड़ से अधिक ज्ञात मरीज हैं. यह संख्या काफी ज्यादा हो सकती है क्योंकि लोग अस्पताल आने के बजाय ऐसे लोगों का झाड़फूंक से इलाज करवाते हैं. रोग बढ़ने पर मरीज की अचानक मृत्यु तक हो सकती है. मिर्गी के इलाज के लिए अनेक प्रकार की औषधियां उपलब्ध हैं. इलाज में सर्जरी का भी रोल होता है. विश्व मिर्गी दिवस के अवसर पर हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ नचिकेत दीक्षित एवं न्यूरो सर्जन डॉ दीपक बंसल ने उक्त बातें कहीं.
न्यूरो विशेषज्ञों ने बताया कि मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के जीवन को काफी सीमित कर देती है. ऐसे रोगियों के अकेले घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी जाती है. कभी भी सीजर आने के कारण रोगी गिरते पड़ते और घायल होते रहते हैं. जीवन की गुणवत्ता काफी कम हो जाती है. इलाज द्वारा ऐसे रोगियों की हालत को काफी हद तक स्थिर किया जा सकता है. यहां तक कि वे अपना सामान्य कामकाज भी कर सकते हैं. पर लोग बाबाओं और ओझाओं के चक्कर में पड़कर न केवल पैसे बल्कि वक्त भी बर्बाद करते हैं.
डॉ नचिकेत दीक्षित ने बताया कि उनके पास मिर्गी के अनेक मरीज हैं. सही डोज में दवाइयों के कारण न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता बनी हुई है बल्कि वे कामकाज करने में भी सक्षम हैं. हाल ही में उनके पास एक मरीज आया है जिसका अब तक नीम हकीम झाड़फूंक से इलाज कर रहे थे. उन्होंने बताया कि मिर्गी के इलाज के लिए कई दवाइयां उपलब्ध हैं. किसी किसी रोगी पर दवाइयां काम नहीं करतीं. ऐसे मरीजों के लिए सर्जिकल उपाय किये जा सकते हैं.
न्यूरोसर्जन डॉ दीपक बंसल ने बताया कि मिर्गी के मरीजों के इलाज में दो तरह की सर्जरी की जाती है. इसे हम फंक्शनल न्यूरोसर्जरी कहा जाता है. इस तकनीक का उपयोग मिर्गी से लेकर पार्किंसन्स तक के मरीजों पर किया जाता है. हमारे देश में यह सुविधा सभी बड़े न्यूरो सेंटर्स में उपलब्ध है. इसका अलावा डीप ब्रेन स्टिमुलेशन जैसी तकनीक का उपयोग किया जाता है जिसमें दिमाग के प्रभावित हिस्से को उत्तेजित करने के उपाय किये जाते हैं.