यह कहावत थोड़ी पुरानी जरूर है पर है बड़े काम की. वैसे आधुनिक दौर मोटिवेशनल स्पीकर्स का है. अब यह कहा जाता है कि जब आप एक उंगली दूसरे की ओर करते हो तो तीन उंगलियां आपकी तरफ हो जाती हैं. कान को चाहे जिधर से घुमा कर पकड़ो, पकड़ा कान ही जाता है. यह तो पकड़वाने वाले पर निर्भर है कि वह कान वैसे ही पकड़वा देता है या मुर्गा बनाकर. छत्तीसगढ़ में भाजपा चार साल सत्ता से दूर क्या रही, उसका मानसिक संतुलन की गड़बड़ा गया है. अब तक उछाले गए सारे मुद्दे मुंह के बाल धड़ाम हो गये. लिहाजा अब एक नया मुद्दा और ढूंढ लाए हैं. बिजली बिल हाफ करने के वायदे का. वैसे भाजपा कहती रही है कि जनता को मुफ्तखोरी की आदत नहीं लगानी चाहिए. इससे मानव संसाधन की क्वालिटी खराब होती है. हम भी इससे सहमत हैं. जब लोगों को मुफ्त की चीजें मिलने लगती हैं तो वह आलसी हो जाते हैं. वैसे भी हमारी तो आदत है प्रेशर में काम करने की. जब अंग्रेज सोंटा मारते थे तो हम वक्त के पाबंद थे. अंग्रेज क्या गए, एक पीढ़ी बीतते बीतते हममें सुर्खाब के पर लग गए. अब किसी भी तरह का फार्म या रिटर्न भरने के लिए हम अंतिम तिथि का इंतजार करते हैं. आईएसटी या भारतीय मानक समय की हमने नई परिभाषा गढ़ ली. हर जगह आधा एक घंटा लेट पहुंचने लगे. सात घंटे की नौकरी में तीन घंटे आराम करने लगे. पर जब मुसीबत सिर पर आती है तो यही जमात सोलह से अठारह घंटे काम कर लेती है. बहरहाल, यहां बात हो रही थी बिजली बिल की. बिजली बिल हाफ क्यों होना चाहिए? यह एक गलत परम्परा है. इससे बिजली की फिजूलखर्ची बढ़ी है. भाजपा इसके खिलाफ रही है. पर अब कांग्रेस को घेरना है, इसलिए नित नए मुद्दे तलाशे जा रहे हैं. वैसे उनकी जानकारी के लिए बता दें कि 400 यूनिट तक के बिजली बिल में अच्छी खासी सब्सिडी है. बिजली बिल का गणित समझने की विशेषज्ञता तो हममें नहीं है पर इतना जरूर जानते हैं कि प्रत्येक बिजली बिल में उपभोक्ता को अब तक हुआ लाभ अंकित रहता है. जिनका बिल हजार-बारह सौ का आता था, उनका बिल अब पांच-छह सौ का आता है. बचत की यह राशि हजारों में है. वैसे नब्बे फीसदी लोग बिजली बिल को गौर से नहीं पढ़ते. उन्हें पता भी नहीं होता कि उनका बिजली बिल क्यों कम आ रहा है. कांग्रेस को इस बात के लिए भाजपा का शुक्रगुजार होना चाहिए कि बिजली बिल की तरफ वह लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है. पचास फीसदी लोगों ने भी अगर बिजली बिल पढ़ लिया तो वे भूपेश बघेल सरकार के फैन हो जाएंगे. वैसे भाजपा को काडर बेस्ड पार्टी कहा जाता है. यहां हर किसी को मुंह खोलने की इजाजत नहीं होती. पर अब पार्टी में दूसरी विचारधारा के इतने लोग आ चुके हैं कि उसका हाल भी पुरानी कांग्रेस की तरह हो गया है. हर कोई अखबार में छा जाना चाहता है. ऐसे में दिक्कत तो आनी ही है. वैसे भाजपा को बताना चाहिए कि उनके राज में जब पेट्रोल, डीजल, खाद्य तेल से लेकर हर चीज महंगी हो गई है और जनता ने उसे स्वीकार भी कर लिया है तो बिजली बिल हाफ कराने की जिद क्यों?