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हाईकोर्ट में हारी भाजपा, कांग्रेस के मत्थे मढ़ा दोष

Dec 30, 2022
Reservation slash is BJPs failure

आरक्षण पर जारी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. एसटी आरक्षण बढ़ाने का फैसला भाजपा का, कोर्ट में पराजय रमन सरकार की और ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा जा रहा है. इससे एक बात और साफ होती है कि एसटी आरक्षण को 20 से 32 करने का कोई बड़ा लाभ भाजपा को नहीं मिला था. तो फिर कांग्रेस इसे सीरियसली क्यों ले? भाजपा कह रही है कि कांग्रेस ने आरक्षण बचाने के लिए पर्याप्त दम नहीं लगाया. क्यों लगाती? साथ ही क्या भाजपा यह कहना चाहती है कि केस अपने मेरिट के कारण नहीं बल्कि बड़ा वकील खड़ा करने से जीता जा सकता है? ऐसे में तो गरीब को कभी न्याय मिलेगा ही नहीं.भाजपा इस मुद्दे को चुनाव तक ले जाना चाहेगी क्योंकि इसके अलावा उसके पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. इसलिए वह आदिवासी समाज की भावनाओं को कुरेद रही है. वह बार-बार कह रही है कि भूपेश सरकार ने एसटी आरक्षण को 32 से घटाकर 20 कर दिया है. भाजपा को उम्मीद थी कि कांग्रेस इस मामले में डिफेंसिव हो जाएगी. पर यह भूपेश सरकार है, डिफेंसिव होना जानती ही नहीं है. कांग्रेस ने भाजपा को आरक्षण किलर पार्टी और मोदी को करियर किलर प्रधानमंत्री बता दिया. भाजपा के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ सरकार को दीवालिया घोषित करते हुए कहा था कि इस सरकार के पास युवाओं को देने के लिए पैसे नहीं हैं, इसलिए आरक्षण का पेंच फंसा दिया है. हो सकता है वो सही कह रहे हों. पर यह हालत अकेले छत्तीसगढ़ की नहीं है, पूरे देश की है. वरना सेना के भर्ती नियमों को बदलने की नौबत नहीं आती. रेलवे के बाद सेना ही देश में सर्वाधिक रोजगार देती है. दरअसल, जनता को भ्रमित करना, लोकतंत्र की राजनीति का वह अभिशाप है जो उसके मूल को नष्ट करती है. लोग भ्रमित रहते हैं. एक के बाद एक नेता बदलते रहते हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आता. जारी दोषारोपण के बीच लोग यह भूलने लगे हैं कि आरक्षण के इस बवाल में कांग्रेस का कोई रोल ही नहीं थी. छत्तीसगढ़ में 2012 तक एसटी को 20, एससी को 16 और ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था. रमन सरकार ने एसटी आरक्षण को 20 से बढ़ाकर 32 और एससी आरक्षण को 16 से घटाकर 12 कर दिया था. इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी जिसका निर्णय अब आया है. कोर्ट ने रमन सरकार के निर्णय को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया. इसके साथ ही आरक्षण का पुराना फार्मूला स्वयमेव लागू हो गया. पर जब तक यह फैसला आता, भाजपा की सरकार जा चुकी थी. वैसे भी रमन सरकार ने यह पैंतरा अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्षों में आजमाया था. इसके बाद एक कार्यकाल उसे और मिल गया पर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में उसका सूपड़ा साफ हो गया.

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