भिलाई। वर्षों बाद इस्पात नगरी का रंगमंच एक बार फिर आलोकित हुआ. नाट्य की नई विधाओं के साथ अष्टरंग ने सहमी हुई नारी के मन में उठ रहे तूफानों को चित्रित करने का प्रयास किया. इसी मंच पर विद्यालयीन छात्राओं ने कथा वाचन का एक नया प्रारूप प्रस्तुत किया. बलात्कार पीड़ितों के प्रति समाज के रवैये पर कुठाराघात करती हुई एकल नाट्य ने प्रेक्षकों को झकझोर दिया. 75 दिवसीय ऑनलाइन ऑफलाइन नाट्य कार्यशाला के बाद किये गये ये मंचन अपना प्रभाव छोड़ गए.
इस आयोजन में मुख्य भूमिका निभाई अष्टरंग भिलाई के संयोजक शिशिर टमोटिया ने. अष्टरंग शहर की आठ हिन्दी नाट्य संस्थाओं का समावेश है. उनके ही प्रयासों से इंदौर के रंगकर्मी दिनेश दीक्षित ने इस कार्यशाला का संचालन किया. अभिनेता, नाट्यकार एवं निर्देशक श्री दीक्षित का भिलाई शहर से पुराना नाता है. श्री नारायणगुरू विद्या भवन के प्रेक्षागार में आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था कविता-कोलाज. इसमें महिला रचनाकारों की आठ प्रतिनिधि कविताओं को शामिल किया गया था. इन कविताओं में अनामिका की बेजगह, मार्था रिवेस मारीडो की उस महिला से बचना, निकी जियोवानी की प्रेम, मनीषा पांडे की प्यार में डुबी हुई लड़कियां, रीवा सिंह की शांत लड़कियां, कमाल सुरैया की एक दिन स्त्री चल देती है चुपचाप दबे पांव, बाबुषा कोहली की ब्रेकअप 8 और 9 तथा नरेश सक्सेना की चंबल एक नदी का नाम नहीं है – शामिल थीं. इन्हें मंच पर अभिव्यक्ति दी डॉ प्रशि तिवारी, सुचिता मुखर्जी, राजश्री देवघरे, अनिता उपाध्याय, कुमुद कथूरिया सिंह, मनीषा निखारे, नीलिमा मिश्रा तथा सिग्मा ने. सिग्मा ने अपनी 83 दिन की बेटी परिकल्पना को गोद में लिए मंच पर अपनी भागीदारी दी.
एकल अभिनय में बलात्कार पीड़ित और उसके साथ बार-बार लगातार होते सामाजिक बलात्कार की पीड़ा को रेखांकित किया गया. निवेदिता जेना के इस नाटक को दिनेश दीक्षित के निर्देशन में सुमिता पाटिल ने मंच पर जीवंत किया. बलात्कार के 20 साल बाद आत्महत्या करने को मजबूर हुई पीड़िता की आत्मा के संवाद प्रेक्षकों पर एक लंबा असर छोड़ने में सफल रहे.
कार्यशाला में कथा वाचन की कला को भी निखारा गया. रूआबांधा शासकीय उच्चतर महाविद्यालय की बच्चियों द्वारा बाल कहानियां सुनाई गईं. भावभंगिमाओं के साथ बच्चों ने कहानियों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया.
मंच पर नेपथ्य में इप्टा के जाने माने रंगकर्मी मणिमय मुखर्जी, शहर के प्रतिष्ठित रंगकर्मी एवं कठपुतली कला विशेषज्ञ विभाष उपाध्याय, त्रिज्या उपाध्याय एवं छोटू ने सहयोग किया.