महिलाओं की स्थिति पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने ठीक से होमवर्क नहीं किया है. वैसे भी जिन संस्थाओं में कृपोत्तीर्णों की संख्या ज्यादा हो, नियुक्तियां राजनीतिक दलों द्वारा की जाती हों, उनसे होमवर्क की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए. उनके पास एक एजेंडा होता है. राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थिति भी यही है. आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि छत्तीसगढ़ में महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं है. यहां आवास नहीं होने के कारण महिलाएं सबसे अधिक प्रताड़ित हो रही हैं. महिला आयोग ने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो NCRB डेटा का हवाला दिया है. महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले में छत्तीसगढ़ देश में 17वें स्थान पर है. इस सूची में असम टॉप पर है जबकि दिल्ली, ओड़ीशा, हरियाणा, तेलंगाना, राजस्थान, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश का नाम पहले आता है. महिलाओं के खिलाफ अपराध कहीं भी हो, यह राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय होना ही चाहिए. पर उन्हें यह नहीं कहना चाहिए था कि छत्तीसगढ़ की महिलाएं जागरूक नहीं हैं. छत्तीसगढ़ उंगलियों पर गिने जा सकने वाले भारत के उन चंद राज्यों में शामिल है जहां सामाजिक तौर पर महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त हैं. हालांकि, इसमें किसी भी दल की सरकार का कोई हाथ नहीं है. यह छत्तीसगढ़ की समतावादी समाज व्यवस्था का परिणाम है. तीज त्यौहार से लेकर वैवाहिक संबंधों तक के मामलों में छत्तीसगढ़ की महिलाएं सदियों से पूरे देश की तुलना में कहीं ज्यादा मुखर हैं. एक छोटे से गांव गनियारी से निकली तीजन बाई ने सामाजिक बेड़ियों को तोड़ते हुए कापालिक शैली में पंडवानी गायन शुरू किया. उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्मविभूषण प्रदान किया गया. गुंडरदेही की शमशाद बेगम को साक्षरता और नशामुक्ति, सुकुलदैहान की फूलबासन बाई यादव को महिला सशक्तिकरण, भिलाई की उषा बारले को पंडवानी, दुर्ग की डॉ मोक्षदा (ममता) चन्द्राकर को लोकगायन, दुर्ग की सबा अंजुम को भारतीय महिला हाकी टीम का प्रतिनिधित्व करने, साहित्यकार मेहरूनिशा परवेज और समाजसेविका राजमोहिनी देवी को पद्मपुरस्कार से नवाजा जा चुका है. उच्च शिक्षा की बात करें तो यहां प्राचार्य से लेकर कुलपति तक के पद पर महिलाएं सफलतापूर्वक काम कर रही हैं. छत्तीसगढ़ में स्वावलंबी महिलाओं की संख्या भी अन्य राज्यों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. हालांकि, उन्होंने एक बात सही कही कि छत्तीसगढ़ की महिलाएं बात-बात पर थाना-पुलिस नहीं करतीं. पर इसका कारण यह नहीं है कि उनमें जागरूकता की कमी है. दरअसल, उन्हें पता है कि किन मामलों में कानूनी उपचारों की जरूरत होती है और कौन से मामले सामाजिक तौर पर सुलझाए जाने चाहिए. महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा को रोकने के लिए जितना प्रभावी कदम महिला स्व सहायता समूहों ने उठाया है, उतना किसी पुलिस के बस का नहीं था. दुःखद यह है कि महिलाओं की ये उपलब्धियां स्वयं महिलाओं की शीर्ष संस्थाओं को दिखाई नहीं देती.