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सत्य नाट्य संस्था के “पुरुष” में दिखी बेहतरीन अदायगी, खिंचे चले आए रंगकर्मी

Jun 4, 2023
"Purush" wins a million hearts

भिलाई। श्री नारायण गुरू विद्याभवन के सभागार में खेला गया नाटक “पुरुष” कई मायनों में यादगार बन गया. सत्य नाट्य संस्था के मंजे हुए कलाकारों का सशक्त अभिनय, तेजी से आगे बढ़ते घटनाक्रम के बीच निर्देशक समाज के कई चेहरे दिखाने में सफल रहे. थिएटर में रेप का दृश्य प्रस्तुत करना एक बड़ी चुनौती होती है, जिसे खूबसूरती के साथ अंजाम दिया गया. मस्तीखोर, बेशर्म नेता के रूप में श्रीकांत तिवारी ने अपने किरदार को खूब अंजाम दिया. इस नाटक को कला साहित्य अकादमी भिलाई, कॉइन इंडिया और सिम्पलेक्स उद्योग समूह का सहयोग एवं समर्थन मिला.
किसी भी नाटक का प्रमुख हिस्सा होता है उसकी मनोरंजन करने की क्षमता. इस कसौटी पर नाटक पूरे 100 अंक ले गया. नेता की भूमिका में श्रीकांत ने अपने किरदार को कुछ ऐसा निभाया कि लोग खलनायक के हर डायलॉग पर तालियां बजाते रहे. एक निर्भीक, विद्रोही कन्या के रूप में मिम्मी बनी श्वेता यादव ने अपने किरदार के साथ खूब न्याय किया. रेप के दृश्य में उनकी चीख और बाद में उसका खामोश और गुमसुम हो जाना एक छाप छोड़ गया. यह खामोशी टूटती है जब वह दहाड़ मारकर रो पड़ती है. इस दौरान दर्शक भी आंखों के कोरों को नम होने से नहीं रोक पाए. पिता के रूप में निर्देशक देवेन्द्र घोष एवं माता के रूप में राजश्री देवघरे ने भी अपने किरदार के साथ खूब न्याय किया.


यह नाटक महिलाओं के मन में पुरुषों को लेकर और पुरुषों के मन में महिलाओं को लेकर चल रहे द्वंद्व का चित्रण करने में सफल रहा. बात की बात में नेता ने कह ही दिया कि ऐसी महिलाएं ही पुरुषों को उकसाती हैं. मिम्मी ने भी पुरुषवादी मानसिकता पर जमकर प्रहार किये, यहां तक कि अपने बॉयफ्रेंड धक्के देकर घर से निकाल दिया. नाटक में यह भी दिखाया गया कि बलात्कार पीड़िता जब लड़ते-लड़ते थक जाती है तो किसी तरह अपराधी उसे खरीद लेता है या अपनी तरफ मिला लेता है.
इस आयोजन को कला एवं साहित्य मित्र समूह तथा सिम्पलेक्स का भी सहयोग मिला जिसका उल्लेख किये बिना नहीं रहा जा सकता. थिएटर को पुनर्जीवित करने के लिए इसी तरह के सहयोग की आवश्यकता है. सिम्पलेक्स कास्टिंग की मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ संगीता केतन शाह ने स्वयं उपस्थित रहकर कलाकारों एवं कला एवं साहित्य मित्र समूह से जुड़े पुराने लोगों का स्वागत एवं सम्मान सांसद के हाथों करवाया. नाटक “पुरुष” का वीडियो

नाटक के दृश्यों के बीच एक नेपथ्य स्वर उभरता है जो बहुत दर्द के साथ “अबकी बरस मोहे बिटिया न कीजो” गाती है. यह एक खूबसूरत प्रयोग था जिसे गायिका ने पूर्ण भाव के साथ प्रस्तुत किया. उनकी आवाज में वह दर्द महसूस किया जा सकता था जिसकी वजह से ऐसा गीत गाने की नौबत आती है. जयप्रकाश नायर, विभाष उपाध्याय, अनिता उपाध्याय, सहित अनेक नाट्यप्रेमी उपस्थित थे.
इस नाटक को देखने के लिए सांसद विजय बघेल अपने साथियों के साथ उपस्थित हुए. उन्होंने नाटक की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए उन दिनों को याद किया जब वे भी फिल्मों और नाटकों में काम किया करते थे. मंच के विशेष आग्रह पर उन्होंने एक भजन की कुछ पंक्तियां भी गुनगुनाई. मंचन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वालों में भिलाई नाट्य जगत के शक्तिपद चक्रवर्ती, संतोष झांझी, प्रदीप शर्मा, जयप्रकाश नायर, मणिमय चक्रवर्ती, दीपेन्द्र हालदार, बबलू विश्वास, अनिरुद्ध श्रीवास्तव सहित अनेक नाट्यप्रेमी उपस्थित थे.
कुछ बातों की तरफ यहां ध्यान आकर्षित करना जरूरी लगता है. नाटक की एक प्रमुख किरदार, जिसे नेता जी ने भाभी कहा, उसे स्थापित नहीं किया गया. यूट्यूब देखकर खाना बनाने वाली एक सामान्य गृहिणी के पास एकाएक पिस्तौल कहां से आई, इसपर ध्यान नहीं दिया गया. शायद यह संदेश देने की कोशिश की गई कि जब महिलाएं चारों तरफ से निराश हो जाएंगी तो हथियार उठाने के लिए विवश हो जाएंगी. अधिकांश दृश्य आधे मंच पर खेले गए जबकि कलाकार विंग्स तक जाकर सट गए. इसी तरह एक दृश्य बिस्तर पर लेटी मां के चेहरे के आगे कुर्सी रख दी गई जिससे उनका चेहरा छिप गया. सेट पर दरवाजे तो लगाए गए पर इस बात को ध्यान नहीं रखा गया कि वहां से निकलकर कलाकार जाएंगे कहां. जब कलाकार दरवाजे में घुस गए तो लोगों ने उन्हें बाजू से निकलकर विंग्स की ओर जाते भी देखा. प्रकाश व्यस्था में कहां चूक हुई इसे भी देखना होगा कि मंच के बीचों बीच एक छाया (डार्क एरिया) कैसे बन रही थी.

8 thoughts on “सत्य नाट्य संस्था के “पुरुष” में दिखी बेहतरीन अदायगी, खिंचे चले आए रंगकर्मी”
  1. बहुत सुन्दर तुरंत प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद । नाटक करने वाले लोगों के लिए ये उत्प्रेरक का काम करती है। नाटकों को जिंदा रखने के लिए ये एक जरूरी उपकरण है। आपका ” संडे कैम्पस ” इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। ये एक शुभ संकेत है। जरा सोचिए बेचारे शौकिया कलाकारों को मिलता ही क्या है। तालियां और प्रशंसा के चंद शब्द और इसी पर वो कुर्बान हो जाते हैं।

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