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सिकलिंग के मरीज की गल गयी कूल्हे की हड्डी, हाइटेक में हुआ इलाज

Oct 16, 2024
Patient refused by AIIMS, MECAHARA, Vellore treated at Hitek

भिलाई। सिकलिंग की समस्या छत्तीसगढ़ और ओड़ीशा में आम है. पर इसके चलते मरीज की ऐसी स्थिति भी हो सकती है, ऐसे मामले कम ही देखने में आते हैं. 18 वर्षीय संदीप भी एक ऐसी ही समस्या से जूझ रहा था. उसके कूल्हे की हड्डी में संक्रमण हो गया था. एक जोड़ डिस्लोकेट हो गया था. वह बेतहाशा दर्द में था और कहीं इलाज नहीं हो रहा था. अंततः वह हाइटेक पहुंचा जहां उसका इलाज संभव हुआ.

संदीप का  इलाज कर रहे अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ दीपक कुमार सिन्हा ने बताया कि मरीज लगभग एक साल से तकलीफ में था. पिछले दस महीने से वह बिस्तर में ही था. उसे लगातार दर्द निवारक औषधियां लेनी पड़ती थी. इसके कारण वह सो भी नहीं पाता था. दरअसल, उसके कूल्हे की हड्डी में संक्रमण था. जोड़ों में पीव भर गया था. दाहिने जांघ की हड्डी कूल्हे के जोड़ से खिसक गई थी. मरीज हिलने डुलने में असमर्थ था. सबसे पहले उसके डिस्लोकेशन का रिडक्शन किया गया और फिर संक्रमण के लिए उसका इलाज शुरू किया गया. नतीजे अच्छे आए और अब मरीज की हालत पहले से काफी बेहतर है.

डॉ सिन्हा ने बताया कि एक सप्ताह के भीतर ही मरीज ने बिना किसी मदद के बिस्तर पर उठकर बैठना शुरू कर दिया. साथ ही वह सपोर्ट लेकर चलने भी लगा. दर्द की दवा बंद हो चुकी थी. काफी समय से पैरों के निष्क्रिय होने और लगातार मुड़े रहने से मांसपेशियों में कुछ शिथिलता आ गई है पर समय के साथ यह भी ठीक हो जाएगा.

मरीज के पिता ने बताया कि वे सरगुजा के रामनगर गांव में रहते हैं. तकलीफ होने पर पहले जिला अस्पताल में दिखाया. वहां से एम्स रिफर कर दिया गया. 15 दिन तक वहां भर्ती भी रहा पर कोई फायदा नहीं हुआ. इसके बाद वे गांव लौट गए. फिर किसी के कहने पर उन्होंने संदीप को मेकाहारा में एडमिट कराया. 15 दिन वहां भी भर्ती रहने के बाद किसी के कहने पर वे उसे रांची ले गए. वहां भी इलाज नहीं होने पर उसे वेल्लोर ले गए. पर वहां भी इलाज नहीं हो पाया. उन्होंने बताया कि जैसे ही मरीज के सिकलिंग की बात सामने आती थी बनती हुई बात बिगड़ जाती थी.

उन्होंने बताया कि थक हार कर जब वे वेल्लोर से लौट रहे थे तब ट्रेन में एक व्यक्ति से मुलाकात हुई. उसका इलाज पहले हाइटेक हॉस्पिटल भिलाई में हो चुका था. उसने अस्पताल का पता देने के साथ ही डॉक्टर का फोन नम्बर भी दिया. हमने बात की तो डाक्टर ने हमें बुला लिया. यहां आने के बाद तुरन्त ही उसका इलाज शुरू कर दिया गया. कुछ ही घंटों में उसे दर्द से आराम मिल गया. एक सप्ताह बाद जब बच्चा अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो हमारी खुशी और आश्चर्य का ठिकाना नहीं था.

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