भिलाई। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट डॉ असलम खान ने कहा कि दिल का दौरा पड़ने पर मरीज को जल्द से जल्द किसी हार्ट हॉस्पिटल में ले जाने की सलाह दी जाती है. पर ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों को शहरों में स्थित अस्पतालों तक पहुंचने में अकसर देर हो जाती है. ऐसे रोगियों की जान बचाने में ग्रामीण एवं कस्बाई क्षेत्रों के चिकित्सक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
डॉ खान परिधीय क्षेत्र में आयोजित सीएमई में ग्रामीण चिकित्सकों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि कैथलैब की सुविधा आ जाने के बाद शहर क्षेत्र में तो आशतीत सुधार हुआ है पर ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल पाता. यदि ऐसे मरीजों को शहर भेजने से पहले उन्हें थ्रॉम्बोलाइज कर दिया जाए तो उनके बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है. रोगी को शहर जाने और इलाज कराने के लिए थोड़ा वक्त मिल जाता है.
डॉ असलम ने बताया कि थ्रॉम्बोलिसिस रक्त में बने थक्कों को तोड़ता है. नए थक्के बनने से रोकता है. इससे रक्त प्रवाह में सुधार होता है और शरीर के अंगों और आपात स्थिति टल जाती है. इससे ऊतकों को नुकसान कम होता है. दिल का दौरा, स्ट्रोक, या फेफड़ों में रक्त के थक्के जैसी स्थितियों में थ्रोम्बोलिसिस का इस्तेमाल किया जाता है. थ्रोम्बोलिसिस से डीप वेन थ्रोम्बोसिस, परिधीय धमनी रोग जैसी स्थितियों से जुड़े रक्त के थक्के भी भंग होते हैं.
बढ़ जाता है गोल्डन आवर
दिल का दौरा पड़ने के बाद के पहले 60 मिनट को गोल्डन ऑवर कहा जाता है. इस दौरान तुरंत चिकित्सा हस्तक्षेप करने से हृदय की क्षति को कम किया जा सकता है और जान बचाई जा सकती है. अगर इलाज में देरी हो जाए, तो अगले छह घंटों के अंदर दिल पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो सकता है और मौत हो सकती है. थ्रॉम्बोलिसिस ऐसी स्थिति में रोगी को कुछ और वक्त दे देता है.
शिविर में देखे 60 से अधिक मरीज
सीएमई से पहले यहां पंचायत के सहयोग से एक स्वास्थ्य शिविर का भी आयोजन किया गया. शिविर में 800 से अधिक मरीज पहुंचे जिनमें से 60 से अधिक मरीजों में हृदय रोग के लक्षण दिखे. डॉ असलम ने इन रोगियों की जांच कर उन्हें दवा के साथ साथ जरूरी हिदायतें भी दीं.