बोहरा मस्जिद के सांझा चूल्हा से आई क्रांति
बिलासपुर। सांझा चूल्हा वह फार्मूला है जहां पूरे समाज का भोजन एक साथ कुछ लोग मिलकर तैयार करते हैं और शेष लोगों को कामकाज के लिए पूरा वक्त मिल जाता है। गरीबों का भी पेट भर जाता है। कभी पंजाब की पहचान रही इस परम्परा को अपनाया है दाऊदी बोहरा समाज ने। धर्मगुरू सैयदना डॉ मोहम्मद बुरहानुद्दीन का यह फैसला रंग लाया और चूल्हा चौके के झंझट से मुक्त होकर महिलाएं अब उद्यमिता की राह में आगे बढ़ रही हैं। read more
धर्म गुरु सैयदना डॉ. मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने सामाजिक एकजुटता और महिला उत्थान के लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक वक्त का खाना मस्जिद में बनवाने का निर्णय लिया। यहां समाज के गरीब तबके के लोगों को भी भोजन मिल जाता है। डॉ. बुरहानुद्दीन के फैसले को अमलीजामा पहनाया वर्तमान धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन साहेब ने। उन्होंने इसके लिए बाकायदा मीनू कैलेंडर शुरू किया है। इसमें सालभर क्या-क्या खाना बनना है, यह शामिल है। दैनिक भास्कर के मुताबिक शहर में बोहरा समाज के 240 परिवार और 1100 सदस्य हैं। सभी का दोपहर का भोजन खपरगंज स्थित मस्जिद में बनता है। यह व्यवस्था अकेले हिंदुस्तान में नहीं बल्कि दुनियाभर के ऐसे लगभग सभी देशों में लागू है, जहां-जहां बोहरा समाज के लोग रहते हैं।
यह हुआ लाभ : सहभोजन से समाज में भाईचारे की भावना प्रबल हुई है। सप्ताह के छह दिन सभी दोपहर को एक जैसा भोजन करते हैं। गरीबों को भी कम से कम एक वक्त के भोजन की गारंटी हो जाती है। रविवार को लोग अपने अपने घरों में भोजन पकाते हैं। रसोई के झंझट से मुक्ति मिलने के कारण महिलाएं अपने हुनर को संवार पा रही हैं। रोजगार मूलक कार्यों से जुड़ पा रही हैं। इससे परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर बन पा रही है। यह एक सामाजिक-आर्थिक मॉडल के रूप में सामने आई है। टिफिनसेवा शुरू होने के बाद जोहरा आरिफ भारमल सरीना हुसैनी ने मिलकर खपरगंज में हकीमी बुटिक खोल ली।